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________________ १२९ ११. ४.७] सुदंसणचरिउ घत्ता-पुरे चरिय करेवि गउ जिणमंदिरहो सइकारणु । लीलामंदगई मुणि लंबियकरु णं वारणु ॥२॥ णियगुरु णविवि तेण तहिँ तक्खणे पच्चक्खाणु गहियं। असणु सुखाणु पाणु तह सादिं चउविह चवि तण्हियं ॥ [रचिता] गुरुणा णीसेसु वि कहिउ जेम किदियम्म सुदंसणे पढिउ तेम । पंचुत्तमवय समिदीउ पंच पंचेंदियजउ छावासयं च । लोच्चाचेलक्कु अण्हाणजुत्तु खिदिसयणु अदंतवणु वि णिहत्त। ठिदिभोयणेक्कभत्तेण जुत्त इय अट्ठवीस मूलगुण वुत्त । चउदह मल बत्तीसंतराय परिपालइ दूरुझियपमाय । सोलह उग्गम मणजणियतोस सोलह उप्पायण होंति दोस। दस एसण पुणु इंगालधूम संजोयण तह य पमाण जाम । इय छयालीस विवजमाणु अच्छइ भायंतउ धम्ममाणु । घत्ता–ण करइ रइ अरई गउ हसइ ण को वि दुगुंछई। होइ ण णिहावसु पुजासकार ण वंछइ ॥३॥ गिरिवरसिलहँ उवरि अत्तावणु देविणु गिंभयालए। पुणु घणसमश रुक्खतले णिवसइ बाहिरि सिसिरयालए ॥ [रचिता] एक्कु जि परमतच्चु मणे झायइ वेण्णि वि रायरोस विणिवायइ । सल्लत्तयतणुसल्लुप्पाडई चउ कसाय दुजण णिद्धाडइ । पंचासवदारइँ परिरंभइ छजीवहँ णिकाय ण णिसुंभइ । सत्त भयाइँ चित्ति णउ जुंजइ अट्ठ दुट्ठ मय दूर वजइ । णवविहु बंभचेरु णिव्वाहइ दहलक्खणु वि धम्मु आराहइ । २. १० क ो 'बियकरु ; घ लंबियकरण । ३. १ क गहियं । २ ख सुपाणु खाणु। ३ ख चयदि। ४ क किरिजम्मु । ५ ख लोच्चाचेयलु। ६ क जुत्त । ७-ग घ गंगालधूम । ८ ख णाम । ६ क णउ दुग्गछ। ; ख णउ को वि दुगुंछइ । ४. १ ख रायदोस। २ क सल्लई तिरिण सल्लु व पाडइ ग सल्लत्तय तिणु सल्लय पाडइ।
SR No.032196
Book TitleSudansan Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayanandi Muni, Hiralal Jain
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa
Publication Year1970
Total Pages372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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