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णयणंदिविरइयउ
[११. २. १
णरवइपमुहएहिँ सव्वेहिँ वि तवलच्छी विहूसिया। कियउ चउत्थु अण्णदिणे' चंपहिँ गोचरिया पयासिया ॥ [ रचिता] जत्थ सिरी अणुहुत्त तहिं पि कयं पुण भिक्खपवित्थरणं । लोहु ण लज्ज भयं ण वि गारउ पेम्मसमं तवचरणं ॥ उच्चउ णीचउ गेहु ण भावइ जाइवि पंगणए घलए। रिक्खन रिक्खे भमंतु कमेण जि चंदु व तुंगणहंगणए ।। साहुसुदंसणरूवणियच्छणे अंग अंगु दलंतियउ । धाइ जोवणइत्तिउणारिउ मेहलवाम खलंतियउ॥ का वि भणेइ सही पुरु खोहिउ आसि अहं विवरीय थिय । एण जि पंडु पड़त्तरु देविणु छम्मिय सा काविलस्स पिय ॥ का वि भणेइ णरिंदही गेहिणि वल्लह णेच्छिय जा अभया। सा वि पहाट करेविणु ढड्ढसु लंबिवि रुक्खि विलक्ख मुया ॥ का वि भणेइ सकत मणोरम वर्जवि दिक्खवहू वरिया। किं तुहुँ मुद्ध कडक्खणिरिक्खणु जुंजहि एण ण संभरियां ॥ ओसरु ओसरु चंदगहिल्ला' आलि म आलि करेहि मणे । लग्गि म धावि विलज्जपयासणु हासु हवेसइ तुझ जणे ॥ दिट्ठि जुयंतरे दितु पगच्छइ अच्छइ मोणवएण भिसं । एहु कहेइ ण इथिकहतरु जेणुववजई” कामरसं ॥ सेसि हासु सुखेडपलोयणु संगु सपुठवरईभरणं । होरु सुडोरु सुकंकणु कुंडलु सेहरु लेइ ण आहरणं ।। इथितिरक्खणउसयउज्झिन ठाणे वसेई करेइ दमं । एहु वि जो मइराकिर छंदउ के वि भणंति लयाकुसुमं ॥
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२. १ क चउत्थु ताम अरणहिं दिणे। २ ख प्रणहत्त। ३ ख समं पि । ४ ख धारिउ। ५ क जोवणु इत्तिउ। ६ क ग घ सहे। ७ ग घ विवरेवि । ८ ख वल्लहो णिच्छेइ। ६ ग घ जुंजए एण स संभरिया। १० ख गहिल्लिय; ग घ गहेल्लिए। ११ ख जेण उवजइ। १२ ख सेसउ ; ग घ सेसइ। १३ ग सखेडु ; घ सखेड । १४ क परणे चलेइ। १५ ख मयराकिर ; गध किर महरा । १६ क को वि।