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५. ४३. १०]
सदसणचरिउ जइ देव णरण णारइय सर्ग जइ जंति मिच्छमइ तिहुवणगे। सम्मत्तणाणदसणसमिद्ध जइ संभवंति संसारि सिद्ध। परयारगमणु तो तुहुँ करेहि चरिमंगि एहिँ मारिउ मरेहि। इय भणइ मणारम जेम जेम सुहदसणु चिंतइ तेम तेम। कसु तणउ तणउ कसु घरु कलत्तु परमत्थे को वि ण सत्तु मित्तु । संसारु भमते मई वि णवर अण्णहि भवे एयहँ दिण्ण पहर । ते महु वि तिक्खपहरणकरग्ग पार्ववि णिमित्तु पहरंति लग्ग । भुवणत्तए वि पवियंभियासु -आवज्जियकम्मही त्थि णासु ।
(रयडा णामे पद्धडिया ) घत्ता-हउँ द्धप्पा उड्ढगइ रयणत्तय संजुत्तउ। बहुविहबज्झन्भंतरहिँ गंथहिँ जिणा व्व परिचत्तउ ॥४२॥
४३ पुणु पुणु णियमर्ण चिंतेइ जाम' दप्पुब्भड भड उत्थरिय ताम । लइ इट्टदेउ संभरि भणंति गलकंदले करवालहिँ हणंति । तहिँ अवसरे वितरु एक्कु पत्तु भणु कासु ण दीसइ सत्तु मित्तु । सो सयल वि भड थंर्भवि धरेइ असिपहर कुसुममालउ करेइ। तो तियसहि णहे संजाय तुहि जयजयरवेण किय कुसुमविहि । सुरताडिज्जंतउ गयणे भाइ दुंदुहि णं अक्खइ एम लोई। परिसेसिवि णियमणे राउ दोसु पालिजइ किर छुड़ वयहँ लेसु । सुरणरहँ पुज्ज तं कवणु चोज्जु लब्भइ मोक्खु वि अणवज्जु पुज्जु । घत्ता-वरसम्मत्तविहूसणहँ भव्वयणहँ जिणसुमरणे ।
णासइ पाउ असेसु लहु तमु जि दिवायरवियरणे" ॥४३॥
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४२. ३ घ संसारि। ४ प्रतिषु 'हंसुद्धप्पा' । ५ ख सुद्धगइ ।
४३. १ ख मणि चितइ एम ; ग घ मणे इय चितेइ। २ ख सुमरिवि । ३ ख गलि । ४ ख हिट्ठि। ५ घ लेइ। ६ ग घ रायदोसु । ७ ख छुड्डु किर । ८ क ज्ज। ६ क विहसणं जिणवर सुमरणे । १० क जेम। ११ क वियरणे तिम णासइ उवसग्ग बहु ।