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रोगिमृत्युविज्ञाने योऽशुभं स्वप्नमालोक्य सुप्त्वा पश्येत् शुभान्वितम् । शुभं तत्र फलं विद्यादशुभं नष्टमादिशेत् ॥ ७ ॥ जो मनुष्य अशुभ स्वप्न को देखकर सो जाय और फिर शुभ स्वप्न को देखे, तो फिर शुभ स्वप्न का फल होगा और अशुभ स्वप्न का फल नष्ट हो जाता है ॥ ७ ॥
अरुणोदयवेलायां दृष्टः स्वप्नः शुभाशुभः । फलं जनयते शीघ्र पुन स्वापविवर्जितः॥ ८॥
अरुणोदय के समय देखा हुआ शुभ अथवा अशुभ स्वप्न शीघ्र ही फल को उत्पन्न करता है, यदि स्वप्न देख कर फिर सोये नहीं ॥ ८॥
अथ तस्य फलं वच्मि स्वस्थे यातं तथातुरे। यो यं रोगं जनयते तदेतदपि वक्ष्यते ॥९॥ अब स्वप्न के फल को कहता हूँ, स्वस्थावस्था में उत्पन्न होने वाले अथवा रुग्णावस्था बीमारी के समय दृष्ट स्वप्न के फल को कहता हूँ। जो स्वप्न जिस रोग को उत्पन्न करता है वह भी कहूँगा ॥ ६ ॥
उष्ट्रा गर्दभैापि श्वभिर्वा दक्षिणं दिशम् । यः स्वप्ने याति यक्ष्मा तं विनिहत्यैव मुञ्चति ॥ १० ॥ जो मनुष्य स्वप्न में ऊँटों के गर्दभों के अथवा कुत्तों के साथ, दक्षिण दिशा को जाता है, उसे यक्ष्मा होगा, और वह असाध्य-उस स्वप्न-द्रष्टा पुरुष को मार कर ही छोड़ेगा ॥ १० ॥
भूतैः साकं पिबेन्मचं स्वप्ने वा कृष्यते शुना। स चोग्रं ज्वरमासाद्य ध्रुवं प्राणान् विमुश्चति ॥ ११ ॥
जो मनुष्य स्वप्न में भूत प्रेत आदि के साथ मद्य पीवे, अथवा कुत्ते से खींचा जाय, अथवा घसीटा जाय, वह उग्र संन्निपात ज्वर को