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रोगिमृत्युविज्ञाने शब्द को यात्रा समय में सुनकर सफल कार्य को माने अर्थात् जाते हुये मार्ग में सुनने पर भी शुभ फल के देने वाले होते हैं ॥ २२ ॥
दाघाटकलावाना-मन्येषां चापि पक्षिणाम् ।
सुस्वरैरेव जानीयात् सिद्धं कार्य तु निश्चयात् ।। २३ ॥ दाघाट (कठफोरवा नाम से लोक में प्रसिद्ध है ) तथा लाव(लालमुनिया नाम से प्रसिद्ध है) एवं और भी पक्षियों के उत्तम शब्दसे निश्चित कार्य को सिद्ध समझे ॥ २३ ॥
छागमत्स्यप्रियंगूश्च द्विजशंखघृतानि च । दीपदपणसिद्धांश्च दृष्ट्वा निश्चिनुयात् शुभम् ॥२४॥ छाग-बकरा, मछली, प्रियंगुदी फल, ब्राह्मण, शंख, घृत, दीप दर्पण और सिद्ध पुरुष को देखकर शुभकार्य का निश्चय करे । अर्थात् यात्रा समय इन्हें देखकर निश्चित रूप से सफलता समझे ॥ २४ ॥
सुगन्धं रोचनं किञ्चिच शुक्लवर्ण विलोकयन् । सिद्धिं निश्चिनुयात् सर्व कार्य मार्गगतो भिषक् ॥ २५ ।।
मार्गगत-मार्ग में प्राप्त अथात् मार्ग में जाते हुये वैद्य यदि सुगन्धित पुष्प इत्र आदि किसी वस्तु को अथवा गोरोचन किंवा शुक्लवर्ण किसी वस्तु को देखे तो सिद्ध सब कार्यका निश्चय करै अर्थात् सिद्ध ही कार्य को समझे ॥ २५ ॥
मृगपक्षिमनुष्याणां प्रशस्ताश्च गिरो गवाम् । भेरीमृदङ्गशङ्खानां शब्दाः सिद्धिप्रदायकाः ।। २६ ॥ मृग पक्षि यद्वा मनुष्यों के प्रशस्त-उत्तम वचन, अथवा गौ की उत्तम वाणी किंवा भेरी, मृदङ्ग, शंख इनका शब्द सिद्धि का दायक है, अर्थात् इनके शब्द, यात्रा करते हुये मार्ग में सुनने से कार्य सिद्ध होता है ॥ २६ ॥