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दशमोऽध्यायः तथा सुरध्वज-देवता की ध्वजा, अथवा पताका, (ध्वजा वर की होती है, पताका स्वर्णादि की होती है। ) अथवा फल, सफेद घोड़ा एवं वर्द्धमान कुमारियों का यदि दर्शन हो तो कार्य को सिद्ध ही समझे ॥ १८ ॥
भिक्षकस्य बलद्वहने-बंद्धस्यैकपशोरपि। सितानां कुसुमानां च दर्शनं सुफलप्रदम् ।। १९ ॥ भिक्षुक का, चलती हुई आग का, बँधे हुये एक पशु का और सफेद फूलों का दर्शन, कार्य सिद्धि के उत्तम फल का देने वाला होता है ॥ १६ ॥ .
मोदकान्नजलादीनां प्रापणं कार्यसाधकम् । उद्धतायाः पृथिव्याश्च दर्शनं कार्यसाधकम् ॥ २० ॥
स्वादिष्ट मोदक अन्न और जल शर्वत इत्यादि की प्राप्ति तथा खोद कर उठती हुई पृथिवी अर्थात् उठती हुई भीत का दर्शन कार्यसिद्धि दायक है। अर्थात् यात्रा समय इनके दर्शन होने से अवश्य कार्य सिद्ध होता है ॥ २० ॥
दृष्ट्वैव मन्यतां सिद्धि नृभियुक्तां स्त्रियं हयीम् ।। सवत्सामपि धेनुं च सुपूर्ण शकटं भिषक ॥ २१ ॥
वैद्य-रोगी के यहाँ जाता हुआ मार्ग में मनुष्यों से युक्त स्त्री को, घोड़ी को, वत्स से युक्त धेनु को अथवा भरे हुये शकट गाड़ी को देखकर निश्चित ही कार्य सिद्धि को समझे ॥ २१ ॥
पिकसारससिद्धार्थ-हंसानां प्रियवादिनाम् ।
चाषाणां शिखिनां शब्दंश्रुत्वा मन्येत सत्फलम् ॥ २२ ॥ पिक-कोयल, सारस, सिद्धार्थ-वदक, हंस, तथा मनोहर बोलते हुये अन्य पक्षियों के एवं चाष-घर की चिड़िया, शिखी-मयूर, इनके