________________
१०]
मृत्यु और परलोक यात्रा
(स) आकाश या भाव शरीर ___ इस स्थूल शरीर के पीछे यह भाव शरीर होता है जो धुएँ की भाँति का होता है । मृत्यु के बाद तेरह दिन तक यह स्थूल शरीर के आसपास घूमता रहता है । इसका विकास सात से चौदह वर्ष की उम्र में हो जाता है। इसी शरीर के विकास से यौन परिपक्वता आती है। जो इस शरीर के विकास तक ही रुक जाता है यह यौन क्रिया तक ही सीमित हो जाता है। वह पेट और प्रजनन को ही जीवन का सार समझता है । ___पशुओं में भी इस शरीर का विकास पाया जाता है । शरीर के चारों ओर दिखाई देने वाला आभा मण्डल (ओरा) इसी शरीर के कारण हैं। इस शरीर का सम्बन्ध कुण्डलिनी के "स्वातिष्ठान चक्र" से है जिसके विकास से ही इसका विकास होता है। इसके विकास से भय, क्रोध, घृणा, हिंसा, अभय, प्रेम, क्षमा, अहिंसा, भागना, डरना, बचना, छिपना, हमला करना आदि गुण विकसित होते हैं।
साधना या शिक्षा द्वारा इनका रूपान्तरण प्रेम, करुणा, अभय, मैत्री, अहिंसा में किया जा सकता है। ये गुण मनुष्य को प्रकृति से मिलते हैं जिनका विकास इस उम्र में हो जाना चाहिए । नहीं होने पर वह व्यक्ति असामान्य कहा जाता है। मन्त्र योग की साधना इसी से आरम्भ होती है। जिसका भाव शरीर विकसित हो जाता है वही मनुष्य है अन्यथा वह पशु
ही है। ___यह छाया शरीर ही "प्राणमय कोश" है। यह कोश सूर्य से प्राप्त विद्युत चुम्बकीय और जीवन शक्ति को ग्रहण कर