________________
जीवात्मा का क्रमिक विकास
[ e१:
इनका पाचन करता है जिससे प्राणदायक शक्तियों का निर्माण होता है जिसे वह स्थूल शरीर में पहुंचाता है। अतिरिक्त प्राण किरणों के रूप में बाहर निकलते रहते हैं जिसे दुर्बल शरीर ग्रहण कर लेता है । छाया शरीर के बाहर निकलने पर मूर्छा आ जाती है। क्लोरोफार्म से भी / छाया शरीर का बहुत सा भाग बाहर निकल जाता है जिससे शरीर का भान नहीं रहता है।
इस छाया को शरीर के बाहर निकलने पर ही प्रेतों का प्रभाव होता है । मृत्यु के समय चेतना छाया शरीर को बाहर निकाल ले जाती है तथा पुनर्जन्म के समय यह छाया शरीर स्थूल शरीर के ढाँचे पर ही स्थूल शरीर से पहले ही बन जाता है । इसी ढाँचे के अनुसार स्थूल तत्त्वों का संग्रह होकर स्थूल शरीर का निर्माण करते हैं ।
000