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शिक्षण प्रक्रिया में सर्वांगपूर्ण परिवर्तन की आवश्यकता || ४५
उपलब्ध उदाहरणों एवं साधनों का प्रयोग
जन साधारण की आम मान्यता यह बनती जाती है कि चोर-चालाक नफे में रहते हैं। वे दूसरों को भुलावे में डालकर अपना उल्लू सरलतापूर्वक सीधा कर सकते हैं। जल्दी धनी बन सकते हैं। सीधे मार्ग पर चलकर जो सफलता देर में मिलती है, उसे टेढ़े-तिरछे मार्ग पर चलकर जल्दी प्राप्त किया जा सकता है। इस मान्यता की पुष्टि निकटवर्ती क्षेत्र में फैले पड़े इस प्रकार के उदाहरणों से भी होती रहती है। हथेली पर सरसों जमाने के लिए आतुर व्यक्ति किसी ऐसी बाजीगरी, बेईमानी को सीखने, चरितार्थ करने के लिए आतुर रहते हैं, जिसमें सतत् प्रयत्न की श्रमशीलता न अपनानी पड़े, प्रामाणिकता सिद्ध करके, विश्वास जीतने और सहयोग पाने के लिए धैर्य रखने, प्रतीक्षा करने की आवश्यकता न पडे। जिनकी इस प्रकार की मान्यता पक जाती है, वे इसी फिराक में रहते हैं कि बेईमानी बदमाशी का कोई ऐसा तरीका ढूंढ़ निकालें, जिसे अपनाकर जल्दी ही प्रचुर लाभ कमाया जा सके। अपनी प्रतिभा का चमत्कार दिखाकर लोगों की आँखों में चकाचौंध पैदा की जा सके। प्रलोभन या दबाव देकर कइयों को साथी सहयोगी बनने के लिए बाधित किया जा सके। यह छद्म इन दिनों तेजी से बढ़ रहा है। एक-दूसरे को प्रोत्साहित करने, सहयोग करने के लिए चोर-चोर मौसेरे भाई भी बढ़ते चले जाते हैं। गिरोह बन जाते हैं। वे एक-दूसरे की अनीति में सहायता ही नहीं करते वरन् आपस में एक-दूसरे को निर्दोष सिद्ध करने में भी साक्षी बनकर रहते हैं। निंदा न होने देने में ढाल बनते हैं और ऐसे सरंजाम खड़े करते हैं, जिनमें भर्त्सना के स्थान पर प्रशंसा मिलने लगे। इसी को कहते हैं कुचक्र-षड़यंत्र। यह कला बहुत विकसित होती जा रही है। सामान्य मानस के लोग ऐसे ही उदाहरणों को अनुकरणीय मान लेते हैं। उस मार्ग को अपनाने में चतुरता