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३८ शिक्षण प्रक्रिया में सर्वांगपूर्ण परिवर्तन की आवश्यकत
ऐसा आजकल हर तरफ होता देखा जा सकता है। कारण यही है कि जिन विषयों की जानकारी की आवश्यकता थोड़े-से गिने-चुने लोगों को पड़ती है, वे विषय सबको पढ़ाए, रटाए जा रहे हैं, परंतु जिन विषयों-अभ्यासों की आवश्यकता जीवन के हर क्षेत्र में, प्रत्येक कदम पर है, उनकें लिए कोई व्यवस्था नहीं बन सकी है। ऊपर दर्शाए गए वे विषय उपेक्षा में ही पड़े हुए हैं।
इन विषयों को अनिवार्य स्तर की प्राथमिकता मिलनी ही चाहिए। यदि उनका समुचित समावेश पाठ्यक्रमों में नहीं हुआ है तो उन्हें विचारशील अध्यापकों को अपनी ओर से पढ़ाने का प्रयत्न करना चाहिए। इस महत्त्वपूर्ण दायित्व से अध्यापक वर्ग मुक्त नहीं हो सकता। जब तक व्यापक स्तर पर इस दिशा में व्यवस्था नहीं होती, तब तक 'कुछ न होने से कुछ भला' की नीति अपनानी होगी। शिक्षकों को अपने स्तर पर, यह भूमिका स्वतः हाथ में लेनी होगी ।