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तुम्हारे ये समाचार पाकर खेद हुआ। 'यद् भावितद् भविष्यत्येव' जो भवितव्यता होती है वह घटना अवश्य बनती ही है..."अनन्त सिद्ध भगवन्तों ने अपने ज्ञान में अपना जो पर्याय देखा है उस घटना/पर्याय को कोई मिथ्या नहीं कर सकता है।
दुनिया में जो भी घटनाएँ बनती हैं, उनमें मुख्यतया पाँच कारण होते हैं-काल, स्वभाव, भवितव्यता, कर्म और पुरुषार्थ । इनके संयोग से ही किसी घटना का निर्माण/सर्जन होता है।
एकाकी भवितव्यता भी कुछ काम नहीं करती है, उसके साथ-साथ अपना कर्म और पुरुषार्थ भी काम करता रहता है।
'गाड़ी का ‘एक्सीडेंट' हुआ। दो व्यक्ति तत्क्षण मर गए. दो व्यक्तियों को भयंकर चोट लगी और एक व्यक्ति का बाल भी बांका नहीं हुआ।
____ गाड़ी में पाँचों व्यक्ति बैठे हुए थे. गाड़ी को जोर से टक्कर लगी....फिर भी दो मरे"दो घायल हुए और एक बच गया... इसका कारण क्या ?
सर्वज्ञ परमात्मा ने इस घटना का स्वतन्त्र कारण बतलाया है और वह है 'कर्म' । व्यक्तिगत कर्म की स्वतन्त्रता के कारण ही एक ही घटना में भिन्न-भिन्न व्यक्ति भिन्न-भिन्न फल का अनुभव करते हैं।
मृत्यु की मंगल यात्रा-55