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बाजार से मुनीम का फोन था—“सेठजी! आप शीघ्र ही दुकान पर आ जाएँ"एक बड़ा व्यापारी पाया है""पाप आयोगे तो १०,०००) रु० के फायदे की सम्भावना है।"
बस! १०,०००) रुपये के लाभ को बात सुनते ही सेठ खडे हो गए और मित्रां से बोले, "मैं प्रभो ५ मिनट में आता हूँ आप भोजन चालू रखें।"..."और वे तुरन्त ही गाड़ी में बैठकर दुकान पर आ गए। भूख लगी होने पर भी सेठ ने खाना छोड़ दिया । क्यों ? भोजन से अधिक राग धन पर है।
सेठजी एक बार दुकान पर बैठकर ग्राहकों से सौदा कर रहे थे. इसी बीच घर से पत्नी का फोन आया 'बच्चा सीढ़ी से नीचे गिर गया है. सिर में भयंकर चोट लगी है उसे अस्पताल ले जाना है।'..."बस। सेठजी ने फोन रखा और ग्राहक से बोले-"ठहरो! मैं अभी आता हूँ।" और वे गाड़ी में बैठकर घर आ गए और बच्चे को तत्क्षण अस्पताल ले गए।
सेठजी ग्राहक को छोड़कर खड़े हो गए। क्यों? क्योंकि धन से भी अधिक राग सन्तान पर है।
कुछ समय बाद सेठजी की पत्नी गर्भवती बनी । गर्भ का काल पूरा होने आया था और अचानक पत्नी की स्थिति गम्भीर हो गई, तुरन्त ही उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया। डॉक्टर ने जाँच करके कहा- "हालत गम्भीर है। दो में से एक बच सकता है। बोलो, किसको बचाऊँ ? पत्नी को या सन्तान को?"
बस ! तत्क्षण सेठ ने कहा--"पत्नी को।" पुत्र को
मृत्यु की मंगल यात्रा-50