SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 68
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ है। मूछीपूर्वक ग्रहण किए गए धर्मोपकरण भी अधिकरण रूप/ परिग्रह रूप बन जाते हैं । मृत्यु में समाधि अर्थात् इस जीवन में किए गए समस्त सम्बन्धों का सहज भाव से विसर्जन/त्याग । व्यक्ति और वस्तुओं के साथ किए-गए सम्बन्धों को तो मृत्यु तोड़ डालती है परन्तु उन पदार्थों के प्रति रही हुई ममता का त्याग, हमारी इच्छा के अधीन है। ममता ही बन्धन का कारण है और ममता का विसर्जन बन्धन-मुक्ति का उपाय है। सामान्यतः हर व्यक्ति को सबसे अधिक राग स्व-देह पर होता है। देह के राग को तोड़ना अत्यन्त कठिन है। • बम्बई में चीरा बाजार में सेठ अमीचन्द की दुकान है। सेठ का अपना छोटा सा परिवार है। सेठजी का आवास-निवास भायखला में है। एक बार सेठ अमीचन्द ने अपने जन्म-दिन के नाते अपने घर पर अपने निकट मित्रों को भोजन के लिए आमंत्रण दिया। भोजन का समय हुआ और सभी मित्र समय पर उपस्थित हो गए। वातानुकूलित कमरे में सभी मित्र भोजन के लिए टेबल-कुर्सी पर बैठ गए. और तत्क्षण सबके सामने सुन्दर व सुगन्धित मिठाई और नमकीन से भरी थाली आ गई। सेठ अमीचन्द भी भोजन के लिए बैठ गए. सेठ भोजन चालू करने ही वाले थे कि इतने में टेलीफोन की घंटी बज उठी। सेठ ने फोन उठाया। मृत्यु-4 मृत्यु की मंगल यात्रा-49
SR No.032173
Book TitleMrutyu Ki Mangal Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1988
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy