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मुमुक्षु 'दीपक' !
आपातकालीन स्थिति में अपने स्वामी युगबाहु को समाधि प्रदान करने वाली महासती मदनरेखा का चरित्र अत्यन्त रोमांचक है। अपने पति को समाधि दिलाकर सचमुच ही उसने 'धर्मपत्नी' का कर्त्तव्य अदा किया था।
इतिहास के सुवर्ण-पृष्ठों पर अंकित इस प्रकार के प्रेरक प्रसंग/चरित्र जब-जब भी पढ़ता हूँ.."हृदय रोमांचित हो उठता है और हृदय से ये शब्द निकल पड़ते हैं--प्रभो! देहि मे समाधि-मरणम्। ___मानव-जीवन के प्रत्येक पल को धन्य बनाने की वृत्ति-प्रवृत्ति के साथ-साथ मृत्यु के अन्तिम पल को भी धन्य बनाना जरूरी है।
सचमुच ही जीवन की सच्ची सफलता 'समाधि-मृत्यु' के प्राधीन ही है।
हाँ ! पत्र लिखने में मुझे समय व पृष्ठ-मर्यादा का ध्यान ही न रहा। मैं भी लिखने में तन्मय बन गया। बस ! अब विराम लेता हूँ।
पत्र मिलने पर अपनी प्रतिक्रिया लिखना। कोई प्रश्न उठे.."तो वह भी निःसंकोच लिखना। यथाशक्य समाधान के लिए प्रयत्न करूंगा।
परिवार में सभी को धर्मलाभ। जिन-धर्म आराधना में उद्यमवंत रहना। शेष शुभ
-रत्नसेनविजय
मृत्यु की मंगल यात्रा-43