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सरणं पव्वज्जामि'... युगबाहु धीरे से बोलते हैं। 'अरिहते सरणं पव्वज्जामि ।' आप सिद्ध भगवन्तों की शरणागति स्वीकार करो। बोलो-'सिद्ध सरणं पव्वज्जामि'; युगबाहु बोलता है 'सिद्ध सरणं पव्वज्जामि ।'
आप निग्रंथ मुनियों की शरणागति स्वीकार करो। बोलो-'साहू सरण पव्वज्जामि ।' युगबाहु कहता है--'साहू सरणं पव्वज्जामि ।' आप केवलोप्ररूपित जिन-धर्म की शरणागति स्वीकार करो। बोलो--'केवलीपण्णत्तं धम्म सरणं पव्वज्जामि ।'
युगबाहु भी मदनरेखा का अनुसरण करते हुए बोलता है, 'केवलोपण्णत्तं धम्म सरणं पव्वज्जामि ।'
हे स्वामिन् ! अरिहंतादि ही इस जगत् में शरण्य हैं, शरणदाता हैं। वे ही अभय के दाता हैं, शरण के दाता हैं ।
आप अपने मन को अरिहंत के ध्यान में जोड़ दें। देह, कुटुम्ब, परिवार, महल आदि पर से मूर्छा का त्याग करदें।
आत्मा के सर्जन में देह का विसर्जन कर दें।" ।
प्रेरणामूर्ति महासती मदनरेखा की वात्सल्यपूर्ण प्रेरणाओं के सरोवर में डूबकर युगबाहु की आत्मा ने परम-शांति का अनुभव किया।
युगबाहु के मुख-मंडल पर प्रसन्नता छा गई। वे अरिहंत के ध्यान में लीन बन गए और शरण्य अरिहत की शरण स्वीकार कर" सहज भाव से देह का त्याग कर समाधिमृत्यु को प्राप्त कर ब्रह्मदेवलोक में देव के रूप में उत्पन्न हुए।
मृत्यु की मंगल यात्रा-42