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________________ सत्त्वशाली हो । सत्त्वशाली पुरुष मृत्यु से घबराते नहीं हैं. वे तो मृत्यु का स्वागत करते हैं। वे तो मृत्यु को महोत्सव रूप बनाते हैं । मृत्यु को महोत्सव बनाने वाली प्रात्माएँ ही 'वीर-मृत्यु' को प्राप्त करती हैं। 'आप मृत्यु से घबराएँ नहीं। हमें देवाधिदेव वीतराग परमात्मा का शासन मिला है। अतः आप मृत्यु को समाधिमय बनाने के लिए सज्ज बनें। जीवन में व्रत-पालन में जो कुछ भी अतिचार लगे हों, उनकी गर्दा करें, निन्दा करें।' ___ महासती मदनरेखा अपने स्वामी को श्रावक-जीवन के व्रतों में लगे अतिचारों की गर्दी करवाती है । अतिचारों की आलोचना के बाद मदनरेखा अपने स्वामी को व्रतों का स्वीकार करवाती है और उसके बाद सर्व जीवों से क्षमापना कराती हुई कहती है...'इस जगत् में जितने भी प्राणी हैं, उनसे भूतकाल में हुए अपराधों की क्षमापना करो। जगत् के समस्त जीवों के साथ मैत्री-भाव धारण करो। इस दुनिया में हमारा कोई भी शत्रु नहीं है. सभी जीव हमारे मित्र हैं। इस जोवन में जिन-जिन व्यक्तियों के साथ वैरभाव हुआ हो, उनसे हृदय से क्षमा-याचना करो। मरिणरथ के प्रति भी वैरभाव न रखो, उसके साथ भी क्षमापना कर लो।' ___'हे स्वामिन् ! देह विनाशशील है"आत्मा अविनाशी हैं । देह के नाश से अपना कोई विनाश नहीं होता है। अतः देह-भिन्न आत्मा की अमरता का विचार करो""प्रात्मा की अमरता का चिन्तन करो।' "इस जगत् में आत्मा के लिए मात्र चार ही शरण्य हैं। आप अरिहंत की शरणागति स्वीकार करो। बोलो-'अरिहते मृत्यु की मंगल यात्रा-41
SR No.032173
Book TitleMrutyu Ki Mangal Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1988
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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