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याचना करने लगी। भिक्षा तो मिल सकती थी, किन्तु बुढ़िया की शर्त सबको अस्वीकार्य थी।
बुढ़िया और आगे बढ़ी। तीसरे घर से भिक्षा की याचना करने लगो। हर घर से उसे भिक्षा मिल सकती थी, परन्तु बुढ़िया की शर्त किसी को मंजूर नहीं थी। कोई कहता–मेरे पिता की मृत्यु हुई है तो कोई कहता पुत्र की तो कोई भाई, बहिन, दादा, दादी को मृत्यु की बात सुनाता ।
बुढ़िया घर-घर भटकी..."परन्तु कहीं से भी उसे अपनी शर्त के अनुसार भिक्षा नहीं मिल पाई। ...आखिर थककर महात्मा बुद्ध के पास आई और बोली-"नाथ ! मुझे कहीं से भी भिक्षा प्राप्त नहीं हो पाई है।"
महात्मा बुद्ध ने कहा,..."तो फिर तुम्हारे पुत्र की स्वस्थता का कोई दूसरा इलाज नहीं है। दुनिया में जो जन्म लेता है उसे मृत्यु के मुख में जाना ही पड़ता है । ऐसा कोई घर अथवा स्थान नहीं है, जहाँ मृत्यु का आगमन नहीं हुआ हो अथवा नहीं होता हो । मृत्यु का आगमन सर्वत्र-सर्वदा सम्भव है। उसके लिए वार-त्योहार-तिथि-मास या समय का कोई प्रतिबन्ध नहीं है। दुनिया में जो पाया है, उसे एक दिन मृत्यु की शरण में अवश्य जाना ही पड़ता है।"
महात्मा बुद्ध की प्रेरक वाणी सुन कर बुढ़िया के ज्ञानचक्षु खुल गए और उसके हृदय में रहा पुत्र-मृत्यु का सन्ताप दूर हो गया।
मृत्यु की मंगल यात्रा-19