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________________ के मूल-भूत स्वरूप की अपेक्षा जगत् में रहे समस्त प्राणियों में एकता है."समानता है । यावत् सिद्ध भगवन्तों के साथ भी मूलभूत द्रव्य की अपेक्षा हमारी एकता/समानता है। जगत् में अनन्त आत्माओं का अस्तित्व होते हुए भी जाति की अपेक्षा विश्व की सभी आत्माएँ एक समान हैं। . प्रात्मा 'चिदानंदमय' है। प्रात्मा स्वयं ही पानंदमय है। एक छोटी सी घटना याद आ रही है• . बम्बई के शेयर बाजार के एक किनारे पर बैठकर एक भिखारी हमेशा भीख माँगता था। जो कोई उधर आता-जाता था उससे उसे भीख मिल जाती थी। इस प्रकार वह जीवन पर्यंत भीख ही माँगता रहा। ७० वर्ष की उम्र में उस भिखारी के शरीर में कोई रोग पैदा हुआ और उस रोग के कारण उसकी मृत्यु हो गई। भिखारी के शव को नगरपालिका के कर्मचारी उठा ले गए। जहाँ यह भिखारी बैठता था, उसके पास ही एक व्यापारी की दुकान थी। उसने सोचा, 'इस स्थान पर वर्षों से यह भिखारी बैठा था.."अतः इस जगह को कम से कम साफ तो करवा एं। ऐसा विचार कर उस व्यापारी ने उस स्थान को खोदा । खोदने के साथ ही उस भूमि में से २००० सोना मोहरें निकलीं। मोहरों को देख कर व्यापारी खुश हो गया। दृष्टान्त का उपनय है-धन का खजाना भिखारी की बैठक के नीचे ही पड़ा था""परन्तु वह भिखारी जीवन-पर्यन्त भिखारी ही रहा, उसी प्रकार सुख प्रानन्द का खजाना प्रात्मा के नीचे अन्दर ही पड़ा है, परन्तु हम उसे बाहर खोज रहे हैं। मृत्यु की मंगल यात्रा-8
SR No.032173
Book TitleMrutyu Ki Mangal Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1988
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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