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का अद्भुत स्रोत है । मुझे तो यह ग्रन्थ अत्यन्त ही पसन्द पड़ा है । कण्ठस्थ तो किया ही है, साथ ही इसके हिन्दी-विवेचन के लिए भी मैंने यत्किंचित् प्रयास किया है ।
उपाध्यायजी म. फरमाते हैं
"अनित्यादि भावनाओं से आत्मा को भावित किए बिना विद्वान् जन के हृदय में भी शांत अमृत-रस का प्रगटीकरण संभव नहीं है।"
पहली अनित्य-भावना के अन्तर्गत गेयाष्टक की आठ गाथाओं में संसार के भौतिक पदार्थों और जीवन की क्षणभंगुरता का मार्मिक शब्दों में वर्णन करने के बाद अन्तिम गाथा में 'प्रात्मा की नित्यता' का वर्णन करते हुए फरमाते हैं
नित्यमेकं चिदानन्दमयमात्मनो,
रूपमभिरूप्य सुखमनुभवेयम् । आत्मा नित्य है। आत्मा एक है। आत्मा चिदानन्द रूप है।
नित्य अर्थात् शाश्वत आत्मा अपने मौलिक स्वरूप का कभी त्याग करने वाली नहीं है।
आत्मा का जो मौलिक स्वरूप है, वह कभी नष्ट होने वाला नहीं है ।
आत्मा एक है अर्थात् आत्मा की जाति एक है। आत्मा
मृत्यु की मंगल यात्रा-7