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अडिग ही रहे। इतना ही नहीं, देह के प्रति निर्मम बने हुए वे मुनिवर सोचने लगे, 'जो जल रहा है, वह मेरा नहीं है और जो मेरा है, वह कभी जलने वाला नहीं है ।'
देह और श्रात्मा भिन्नस्वभावी हैं । देह नश्वर है, आत्मा शाश्वत है । देह विनाशीक है, आत्मा अविनाशी है । अतः देह के पुजारी मिटकर आत्मा के पुजारी बनो । देह के राग का त्याग कर आत्मा का राग प्रकट करो ।
देह विनाशीक तत्त्व है, आत्मा अविनाशी है अतः देह के वियोग में दुःखी न बनो, देह के संयोग में राजी न हो । देह के नाश में अपना नाश न मानो ।
मुमुक्षु 'दीपक' !
देह में आत्मबुद्धि का त्याग कर आत्मा में आत्मबुद्धि करना ही अन्तरात्मदशा है । परमात्म-दशा की प्राप्ति के लिए अन्तरात्मदशा की प्राप्ति अनिवार्य है ।
देह में आत्मबुद्धि को त्यागकर, आत्मा में आत्मबुद्धि स्थिर कर शीघ्र ही परमात्म- पद की प्राप्ति करो - इसी शुभेच्छा के साथ
मृत्यु की मंगल यात्रा - 115
- रत्नसेन विजय