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________________ भव्य स्वागत किया था. उसी ऋषिदत्ता का पापोदय आने पर, उसके ही श्वसुर ने उसे मौत के घाट उतारने की आज्ञा कर दी थी। • सनत्कुमार चक्रवर्ती के रूप-दर्शन के लिए दूर-दूर से लोग आते थे। सनत्कुमार चक्री अत्यन्त रूपवान् थे, बलिष्ठ थे परन्तु ज्योंही पाप का उदय हुआ, त्योंही उनकी काया में भयंकर रोग फैल गए। ठीक ही कहा है-- तन-धन-यौवन सब ही झूठा , प्राण पलक में जावे । अतः इस संसार में कोई भी विश्वास करने योग्य नहीं है । ग्रन्थकार महर्षि फरमाते हैं--'रोग, जरा और मृत्यु रूपी डाकू अपने पीछे लगे हुए हैं, वे किसी को नहीं छोड़ते हैं।' • जिस रूपसुन्दरी को अपने रूप का गर्व था, उसकी काया केन्सर से ग्रस्त हो गई. उसका सारा अभिमान गल गया। • जो व्यक्ति युवावस्था में अनेक पर हुकम चलाता था आज वृद्धावस्था से घिरे होने के कारण, उसकी ओर कोई देखने के लिए तैयार नहीं है। • कल तो उसके लग्न-प्रसंग का वरघोड़ा निकला था. सभी आनन्द-कल्लोल कर रहे थे, आज उसी की शव-यात्रा निकल रही है, चारों ओर रुदन-क्रन्दन सुनाई दे रहा है। संसार का 'नग्न-चित्र' प्रस्तुत करने वाली, कवि की ये पंक्तियाँ याद आ जाती हैं मृत्यु की मंगल यात्रा-98
SR No.032173
Book TitleMrutyu Ki Mangal Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1988
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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