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इधर एक दूल्हा घोड़े चढ़ा है ,
उधर एक जनाजा उठा जा रहा है । इधर वाह-वाह है , उधर ठंडी प्राहें,
कोई रो रहा है, कोई गा रहा है । शायद इसी का नाम है दुनिया ,
कोई पा रहा है, कोई जा रहा है।
_इसी का नाम है दुनिया ॥
दुनिया के सभी पदार्थ नाशवन्त हैं अत: वे पदार्थ अपनी प्रात्मा को शरण देने में समर्थ नहीं हैं। कोई भी पदार्थ या व्यक्ति हमें मृत्यु से बचा नहीं सकता।
सम्राट् हो चाहे चक्रवर्ती, देव हो चाहे देवेन्द्र, सभी को मौत से भेंटना ही पड़ता है।
__ किस समय कौन-सा रोग उदय में आ जाएगा, कुछ कह नहीं सकते।
जरा का अर्थ मात्र वृद्धावस्था नहीं है, जरा का एक अर्थ वयोहानि भी है अर्थात् प्रतिक्षण हमारे आयुष्य में हानि होती ही जा रही है। जिस प्रकार दीपक ज्यों-ज्यों जलता है, त्यों-त्यों उसका तेल कम होता जाता है, उसी प्रकार ज्यों-ज्यों समय बीतता है, त्यों-त्यों मृत्यु निकट आती जाती है। इससे सिद्ध होता है कि हम प्रतिक्षण वृद्ध होते जा रहे हैं।
रोग, जरा और मृत्यु के बन्धन से मुक्त करने में एक मात्र 'जिनधर्म' ही समर्थ है।
मृत्यु की मंगल यात्रा-99