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________________ जो आत्मा मोह-विजेता है..."अथवा मोहजय के लिए प्रयत्नशील है "वह प्रात्मा सोते हुए भी जाग्रत ही है । मोह से जाग्रत बनने के लिए हमें इस जीवन में बहुत सी अनुकूल सामग्रियाँ प्राप्त हुई हैं। परमात्मा की वाणी मोह/मिथ्यात्व कुवादी रूपी कुरंग (मृग) के संत्रासन के लिए सिंहनाद समान है। ठीक ही कहा है 'कुवादि-कुरङ्गसन्त्रासनसिंहनादाः' । परमात्मा की वारणी मोह के लिए जोरदार तमाचा है। 'पाचारांग-सूत्र' में प्रभु महावीर ने भव्यात्माओं को सम्बोधित करते हुए ठीक ही कहा है-- 'उट्ठिए, नो पमायए' उठो, जागो, प्रमाद का त्याग करो। अन्तरात्मा की सुषुप्त चेतना को जागृत करो। इस संसार में कोई पदार्थ शरण्य नहीं है। कोई भी विश्वास करने योग्य नहीं है; क्योंकि जगत् के सभी पदार्थ परिवर्तनशील हैं."प्रतिक्षण नष्ट होते जा रहे हैं । जो स्वयं मर रहा हो, वह दूसरे को कैसे बचाएगा? जो स्वयं स्थिर नहीं है, वह दूसरे की क्या सुरक्षा करेगा ? जो स्वयं नाशवन्त है वह दूसरे को क्या प्रानन्द देगा? मृत्यु की मंगल यात्रा-96
SR No.032173
Book TitleMrutyu Ki Mangal Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1988
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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