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आज करे सो अब।" और अशुभ विचार पाए तब सोचें-'पाज करे सो काल कर, काल करे सो परसों।' भाव यह है कि अशुभ विचार को कालक्षेप आदि कर किसी भी तरह से निष्फल बनाने का प्रयत्न करना चाहिये ।
ग्रन्थकार महर्षि कहते हैं कि जिस शुभ कार्य को तू कल के भरोसे छोड़ रहा है, उसे आज ही कर ले, क्योंकि 'काल' विघ्नों से भरा हुआ है।'
'समराइच्चकहा' की अन्तर्कथा में आई हुई 'यशोधर' की कहानी सुनी ही होगी?
चारित्रधर्म की स्वीकृति में हुए थोड़े से प्रमाद के कारण उसे कितने भवों तक संसार में भटकना पड़ा ?
मुमुक्षु 'दीपक' !
शास्त्र में तो कहा है कि आठ वर्ष की लघु वय में ही संयम स्वीकार कर लेना चाहिये।
इस बात को तू बराबर याद रख ले 'मानव-जीवन संयमसाधना के लिए ही हैं'..."संयम की साधना एक मात्र मानव-जीवन में ही शक्य है, अतः प्रमाद का त्याग कर ।
प्राचारांग-सूत्र में श्रमण भगवान महावीर परमात्मा ने कहा है- 'खणं जाणइ पंडीए।'
जो अवसर को जानता है (और अवसर को जानकर उसे साध लेता है) वही पंडित है।
मृत्यु की मंगल यात्रा-84