________________
पुत्र के इस वारणी-चातुर्य से प्रभावित बनी माँ ने अपने पुत्र को संयम-मार्ग पर जाने के लिए सहर्ष अनुमति दे दी।
'समरादित्य-चरित्र' में एक जगह लिखा है- 'इस संसार में संसारी जीव जीता है, वह मृत्यु (यमराज) का ही प्रमाद है।'
मृत्यु की नंगी तलवार प्रत्येक जीव पर सतत लटक रही है । प्रतः शुभ कार्य में प्रमाद नहीं करना चाहिये।
नीतिशास्त्र में भी कहा है- 'शुभेषु शीघ्रम्' शुभ कार्य शीघ्र करने चाहिये, उसमें देरी करना हितकर नहीं है ।
_ 'मन में शुभ विचार पैदा होना' पुण्योदय का लक्षण है। अनादि के कुसंस्कारों के कारण शुभ विचार अधिक समय टिक नहीं पाते हैं, अतः शुभ विचार को क्रियान्वित करने में देरी नहीं करनी चाहिये।
श्रेयस्कर-कल्याणकारी कार्यों में ही विघ्नों की सम्भावना होती है, अतः अवसर हाथ लगते ही शुभ कार्य कर लेने चाहिये।
अनादिकाल से कुवासनाओं की गुलामी होने के कारण खराब/अशुभ विचार आने की सम्भावना रहती है। उन अशुभ विचारों से बचने के लिए, अशुभ विचार आने के बाद कुछ कालक्षेप कर देना चाहिये। अशुभ विचार को शीघ्र क्रियान्वित न होने दें।
शुभ विचार आने पर सोचें, -"काल करे सो आज कर,
मृत्यु की मंगल यात्रा-83