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________________ .. माँ ने कहा-"बेटा ! इतनी जल्दी क्या है ?" अतिमुक्तक ने कहा-"माँ ! मैं उसे जानता हूँ..."फिर भी उसे नहीं जानता हूँ, अतः दीक्षा के लिए जल्दी कर रहा हूँ।" - 'बेटा ! तू क्या कहना चाहता है ? मेरी समझ में नहीं आ रहा है। माँ ने कहा। ” “माँ ! मृत्यु आने वाली है, उसे मैं अच्छी तरह से जानता हूँ, परन्तु वह कब आने वाली है ? उसका मुझे कुछ भी पता नहीं है, अतः जीवन की सफलता के लिए शीघ्र ही संयम-जीवन स्वीकार करना चाहता हूँ।" ___ अतिमुक्तक के इस उत्तर को सुनकर माँ प्रसन्न हो गई और उसने अपने लाड़ले सपूत को त्यागमार्ग पर जाने के लिए सहर्ष अनुमति दे दी। • पूर्व भव की साधना के फलस्वरूप अत्यन्त छोटी वय में दीक्षा के लिए उत्सुक बने अपने पुत्र को माँ ने कहा-"तू तो अभी छोटा है बड़ा होकर दीक्षा लेना।" पुत्र ने कहा, 'माँ ! चूल्हे में डाली गई छोटी-२ लकड़ियाँ पहले जलकर राख हो जाती हैं या बड़ी लकड़ियाँ ?' माँ ने कहा-'छोटी लकड़ियाँ पहले जलकर राख बनती हैं।' बेटे ने कहा-"माँ ! काल की अग्नि में, मैं भी तो उन छोटी लकड़ियों की तरह ही हूँ, अतः वह 'काल' मुझे भस्मसात् करे"उसके पहले ही मैं क्यों न आत्मसाधना कर लू?". मृत्यु की मंगल यात्रा-82
SR No.032173
Book TitleMrutyu Ki Mangal Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1988
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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