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________________ फिर से विद्यालय जाना होता है और प्रारम्भ से पढ़ना लिखना सीखना होता है। पिछले जन्म में हमने जो भी ज्ञान प्राप्त किया था उसे हम इस जन्म में भूल जाते हैं। वास्तविकता यह है कि हम परम ज्ञान खोज रहे हैं परन्तु वह इस भौतिक शरीर से नहीं पाया जा सकता है। हम सब इन शरीरों से आनन्द खोज रहे हैं परन्तु शारीरिक आनन्द वास्तविक आनन्द नहीं है। यह आडम्बरी है। हमें समझना चाहिए कि यदि हम इस आडम्बरी आनन्द में लगे रहे तो हम अपने सनातन आनन्द के स्तर को पाने योग्य नहीं हो सकेंगे। ___शरीर को बीमारी की स्थिति समझना चाहिए। बीमार व्यक्ति ठीक से आनन्द नहीं ले सकता है। उदाहरण के लिए पीलिया बीमारी वाले व्यक्ति को चीनी कड़वी लगेगी, परन्तु स्वस्थ व्यक्ति उसके मीठेपन का स्वाद ले सकता है। दोनों संजोगों में चीनी एक है लेकिन हमें अपनी स्थिति के अनुसार इसके विभिन्न स्वाद लगते हैं। जब तक कि हम इस भौतिक शारीरिक जीवन की बीमारी से ठीक नहीं होंगे, हम अलौकिक जीवन के मीठेपन का स्वाद नहीं ले सकते हैं। वास्तव में वह हमें स्वाद में कड़वा लगेगा और फिर इस सांसारिक जीवन के आनन्द को बढ़ाने से हमारी बीमारी और भी बढ़ती जायगी, टाइफाइड का रोगी ठोस भोजन नहीं कर सकता है और यदि उसे आनन्द लेने के लिए दे और वह खाये तो बीमारी बढ़ेगी और जीवन भयंकर स्थिति में पड़ जायेगा। यदि हम वास्तव में सांसारिक जीवन के दुःखों से मुक्ति पाना चाहते हैं तो हमें शरीर की आवश्यकतायें और आनन्द कम करने होंगे। वास्तव में सांसारिक आनन्द आनन्द नहीं है। वास्तविक आनन्द कभी समाप्त नहीं होता है। महाभारत में एक श्लोक है-'रमन्ते योगिनोऽनन्ते'-योगी जो आत्मज्ञान के मार्ग में प्रगति करने की चेष्टा कर रहे हैं वे वास्तव में आनन्द ले रहे हैं और वह आनन्द अनन्त है-कभी न अन्त होने वाला। यह इसलिए है कि उनका आनन्द
SR No.032172
Book TitleJanma Aur Mrutyu Se Pare
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA C Bhaktivedant
PublisherBhaktivedant Book Trust
Publication Year1977
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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