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हे नाथ ! समवसरण में मणिरत्नजडित सिंहासन पर विराजमान तथा तेजके पुञ्जरूप आपको देखकर तत्त्वजिज्ञासु बुद्धिमान् पुरुष आपके स्वरूपके निर्णय में शङ्काशील होते हैं और वे तर्क करते हैं क्या ये चन्द्रमा हैं ? नहीं, क्यों कि चन्द्रमा तो कलङ्कयुक्त है, तो क्वा ये सूर्य हैं नहीं, क्यों कि सूर्यका ताप तो अतिशय प्रचण्ड होता है परन्तु ये तो अतिशय शीतल हैं ॥३४॥
पुंज-स्त्विषा-मिति पुरा निरणाथि पश्चाद्-,
व्यक्ताकृति-स्तनुधराय-मिति प्रबुद्धेः । भव्यैः पुमानिति पुनः प्रशम- स्वभावः. कारुण्यराशिरिति वीरजिनः क्रमेण ३५