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१३६ :: परमसखा मृत्यु स्वादिष्ट है, इस वास्ते हद से ज्यादा खाऊं, तो अपने सामने ही अंपनी प्रतिष्ठा मैं खो बैठू।
महायान बौद्धों का एक सुन्दर संस्कृत ग्रन्थ है 'बोधिचर्यावतार' । उसका एक वचन मुझे अच्छा लगा है :
चित्तरक्षाव्रतं मुक्त्वा बहुभिः किम् मम व्रतः। __"अपने चित्त को काबू में रखने के एक व्रत को छोड़कर दूसरे अनेक व्रतों से मेरा क्या मतलब ?" चित्त को काबू में रखने का एक ही व्रत मनुष्य के लिए काफी है। इसमें गफलत हुई तो बाकी के व्रत कुछ मदद नहीं करेंगे। ____ चन्द लोग कहते हैं कि ब्रह्मचर्य के पालन से मनुष्य दीर्घायु होता है । ‘मरणं बिन्दुपातेन, जीवनं बिन्दुधारणात् ।' ब्रह्मचर्य प्रारोग्य के लिए और आध्यात्मिक साधना के लिए उत्कट साधना है।
अनुभव कहता है कि शंकराचार्य जैसे कई विख्यात नैष्ठिक पवित्र ब्रह्मचारी अल्पायु थे, और कई विलासी लोग दीर्घायु हो सके थे। ____ मैं मानता हूं कि संयमी माता-पिता से जिन्हें अच्छा पिंड मिला है, वे अगर संयमी रहें तो उनका दीर्घायु होना स्वाभाविक है। श्रीकृष्ण जैसे गृहस्थाश्रमी सौ वर्ष से भी अधिक जीये। दक्षिण रूस में और काश्मीर के उत्तर में ऐसी कई जातियां हैं, जिनमें सौ वर्ष से अधिक जीनेवाले बहुत-से लोग पाये जाते हैं। __ ताजा, स्वच्छ पौष्टिक मिताहार, अनुकूल परिश्रम, खुली हवा का जीवन और प्रसन्न मन, इतना संबल हो तो मनुष्य अवश्य दीर्घायु होगा।
मुझे तो दो दफ क्षयरोग भी हुआ था। बचपन में शरीर इतना दुर्बल कि गर्दन सीधी नहीं रहती थी। लेकिन मैं संभाल के चला। खूब सफर किया। जीवन के रस शुद्ध और ताजे रक्खे । कभी भी प्रति चिन्ता नहीं की। उत्साह और सन्तोष का