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दीर्घायुता का रहस्य : १३५ हुई । दूसरे दिन से चीनी का या मिठाइयों का कुछ विशेष प्राकर्षण न रहा। तब से मैंने चीनी न खाने का व्रत नहीं लिया। लेकिन कह सकता हूं कि तब से आजतक मैंने चीनी बहुत खाई ही नहीं। नियम के बिना ही संयम चलता आया है। किसी ने स्वादिष्ट चीज खाने को दे दी, तो खाली। चित्तवृत्ति मिष्ट वस्तु के प्रति दौड़ती ही नहीं । पाश्रम-जीवन का असर समझाने के लिए यह उदाहरण बस है। __ आहार की मात्रा हद से ज्यादा न हो। सारे दिन खाते रहना कितना विश्री है, इसका खयाल रहे, विशेष भूख न होते हुए भी केवल स्वाद के लिए खाना, असंस्कारिता की निशानी है, इतना ध्यान में रखना, निषिद्ध आहार का सेवन नहीं करना, इत्यादि सादे नियम चलाना काफी है। ___ मैं मानता हूं कि सत्य और संयम, ये दो बातें मनुष्य-जीवन को प्रतिष्ठा के लिए अत्यन्त आवश्यक हैं। संयम केवल कामोपभोग यानी विषय-वासना के बारे में ही नहीं, किन्तु संयम वाणी का भी हो। सब तरह के जीवन-व्यवहार में संयम के बिना, सर्वांगीण जीवन-विकास हो नहीं सकता। किसी एक चीज में बह जाना, कभी-कभी हितकर भले ही हो, सर्वांगीण विकास की दृष्टि से वह हितकर नहीं है, इतना जिनके मन में बराबर बैठ गया है, उनका जीवन सुसूत्र होगा ही। ___चाव से खाना रसिकता का लक्षण है। ज्यादा खाने में पेटूपन है। बचपन से ही इस बात में मैं सतर्क हूं। किसी समय मेरा आहार प्रमाण से अधिक था सही, लेकिन वे जवानी के दिन थे, चल गया। अब खाते समय मेरा ध्यान आहार की मात्रा की ओर हमेशा रहता ही है। सफर में जब शंका होती है कि शाम का भोजन मिलेगा या नहीं, तब अवश्य हिम्मत करके थोड़ा अधिक खा लेता हूं। लेकिन वह भी इरादा-पूर्वक होता है । चीज