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________________ ८७ विषयानुक्रमणिका धर्मध्यान में सम्भव लेश्याओं का निर्देश ६६ । केवली के मन का प्रभाव हो जाने पर भी धर्मध्यान के अनुमापक हेतु ६७-६८ | शुक्लध्यान की सम्भावना ८४-८६ शुक्लध्यान के आलम्बन शुक्लध्यान के समाप्त होने पर चिन्तनीय धर्मध्यानगत क्रम की अपेक्षा शुक्लध्यानगत __ चार अनुप्रेक्षाओं का निर्देश ८७-८८ क्रम की विशेषता शुक्लध्यान में सम्भव लेश्या ८९ शुक्लध्यान के इस प्रसंग में मनोयोग शुक्लध्यान के अनुमापक लिंगों का निर्देश निरोध के क्रम की प्ररूपणा ७१-७५ करते हुए उनका स्वरूप ६०-६२ वचन व काय का निरोध धर्मध्यान और शुक्लध्यान का फल ६३-६५ शुक्लध्यान के प्रसंग में ध्याता का निरूपण. ध्यान मोक्ष का हेतु है, इसका अनेक ___ करते हुए उसके चार भेदों का स्वरूप ७७-८२ दृष्टान्तों द्वारा स्पष्टीकरण ६६-१०२ योगाश्रित शुक्लध्यान के चार भेदों के ध्यान का ऐहलौकिक फल १०२-४ स्वामियों का निर्देश ८३ | ध्यान का उपसंहार १०५ (ध्यानस्तव) विषय श्लोक संख्या विषय श्लोक संख्या प्रात्मसिद्धि के निमित्त परमात्मा की स्तुति १-२ | रूपस्थ ध्यान का स्वरूप ३०-३१ सिद्धि का स्वरूप __ ३-४ | रूपातीत ध्यान का स्वरूप ३२-३६ ज्ञानस्वरूप प्रात्मा के प्रतिभास विना ध्यान बहिरात्मा के देवदर्शन की सम्भावना ३७ __सम्भव नहीं अन्तरात्मा के देवदर्शनविषयक सामर्थ्य ३८-३६ ध्यान के स्वरूप का निर्देश करते हुए वह नौ पदार्थों का निर्देश ४० अध्यात्मवेदी के होता है, इसका जीव का लक्षण चेतना बतलाते हुए उस स्पष्टीकरण चेतना का स्वरूप ४१-४२ ध्यान के चार भेदों का निर्देश करते हए स्वरूपनिर्देशपूर्वक ज्ञान के पाठ भेद व प्रार्त-रौद्र की संसारहेतुता व धर्म-शुक्ल उनका स्वामित्व ४३-४५ की मोक्षहेतुता का निर्देश दर्शन का स्वरूप व उसके भेद ४६.४७ प्रार्तध्यान के चार भेद व उनके स्वामी ९-१० ज्ञान-दर्शन क्रम से होते हैं या साथ, चार भेद स्वरूप रौद्रध्यान का स्वामित्व इसका स्पष्टीकरण धर्म के स्वरूप को दिखलाते हुए उससे अन- अजीव का लक्षण पेत धर्म्यध्यान के चार भेदों का निर्देश पुण्य के दो भेद व उनका स्वरूप व स्वामित्व १२-१३ पाप के दो भेद व उनका स्वरूप शुक्लध्यान के स्वरूप को प्रगट करते हुए आस्रव का स्वरूप __ उसके चार भेद व स्वामित्व १६-२१ । संवर का स्वरूप व भेद मोह के क्षीण हो जाने पर सर्वज्ञ के ध्यान निर्जरा का स्वरूप कैसे सम्भव है, इसका स्पष्टीकरण २२-२३ बन्ध का स्वरूप ध्यान के अन्य चार भेद २४ मोक्ष का स्वरूप पिण्डस्थ ध्यान का स्वरूप २५-२८ सात तत्त्वों की सूचना पदस्थ ध्यान का स्वरूप २६ । छह द्रव्यों का निर्देश
SR No.032155
Book TitleDhyanhatak Tatha Dhyanstava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaribhadrasuri, Bhaskarnandi, Balchandra Siddhantshastri
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year1976
Total Pages200
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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