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________________ दं जीव द्रव्य का स्वरूप पुद्गलों का स्वरूप जीवों व पुद्गलों की सक्रियता का निर्देश धर्म-अधर्म द्रव्यों का स्वरूप करते हुए आकाश का स्वरूप काल का स्वरूप छह द्रव्यों में अस्तिकाय व अनस्तिकाय कौन हैं, इसका निर्देश द्रव्यों की प्रदेश संख्या प्रमाण का स्वरूप व भेद नय का स्वरूप व उसके भेद निक्षेप का स्वरूप व उसके भेद मोक्षमार्ग का स्वरूप पृष्ठ पंक्ति ७ " & १० १३ १६ Em w x 2 " १४ १० ε ८ १५ १६ ७ २० ५. २० ८ २२ ५ (ध्यानशतक) अशुद्ध ११ 21 २२ २० २३ ८ तयोच्यते परपाषण्ड -द्यपद्रव ज्इयर गणावर - गणधर - शुद्ध गुद्धयः गुणर्द्धयः उपजायते- उपजायते । ध्यानस्तव ५६ ६०-६१ ६५-६६ ६७ ६८ ६६-७२ ७३-७६ ७७ तथोच्यते परपाषण्ड द्युपद्रव ६२ ६३ ૬૪ जूइयर गणधर - गणधरेनें स्थितः लेश्यापेक्षयः लेश्यापेक्षया निजकानि निजकृतानि -यत्यात्मानमिति यन्त्यात्मानमिति शुद्धि पत्र सम्यग्दर्शन का स्वरूप व उसके भेद सम्यग्ज्ञान का स्वरूप सम्यक् चारित्र का स्वरूप श्रद्धानादि तीन समस्तरूप में ही मोक्ष के कारण हैं, इसके लिए श्रौषधि का दृष्टान्त स्तुतिविषयक अपनी असमर्थता को व्यक्त करते हुए ग्रन्थकार द्वारा उसके करने के कारण का निर्देश थितः मनः पर्याज्ञानादि मनःपर्यायज्ञानादि सद्धर्मावश्यक-नि सद्धर्मावश्यकानि १५ सम्यग परिवले - सम्यगपरिक्ले " २६ २४ सूत्रार्था-व सूत्रार्थाव २६ १७ भंगाइ पज्जवा भंगाइपज्जवा ४१ १० सेलेसिका सेलेसिका - ५० १६-१७ विरेको (चौ-) षध विरेको [ चको ] षघ इस स्तुति के विषय में स्खलित होने पर ग्रन्थकार की विद्वानों द्वारा उसके संशोधनविषयक प्रेरणा 1011 अन्तिम प्रशस्ति पृष्ठ पंक्ति ८ २३ 27 & " १० " १२ १३ २५ ५ ३४ ३ ७ १७ ७ (ध्यानस्तव ) अशुद्ध है । वह चार प्रकार का है, जो होता है ॥ है तो कभी निर्वृत्ति सकती शुद्ध है, जो ७८-८८ ८६ ६०-६१ 1 ६२ ६३-६७ ६८ ६६-१०० होता है । वह चार प्रकार का है । है और कभी निवृत्ति सकता भूत भूल चेतना लक्षणस्तत्र चेतनालक्षणस्तत्र इन्द्रिय से श्राश्रय इन्द्रिय के आश्रय श्लोक ३१ में 'देवं सदेहमर्हन्तं' इस सम्भावित पाठ के अनुसार उसका अनुवाद इस प्रकार होगाअथवा हे देव ! जो शुद्ध, धवल, अपने से भिन्न और प्रातिहार्यादि से विभूषित सदेह — परमोदारिक शरीर से सहित — प्ररहन्त का ध्यान करता है उसके रूपस्थध्यान होता है ।
SR No.032155
Book TitleDhyanhatak Tatha Dhyanstava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaribhadrasuri, Bhaskarnandi, Balchandra Siddhantshastri
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year1976
Total Pages200
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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