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प्रस्तावना
घव. पु. १३, पृ. गाथांक
ध्या. श. गा.
पाठ
पाठ चलंतयं
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४०
३७
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जया ण ज्झाणावरोहिणी खविय तो जत्थ झाणेसु णिच्चल तहा पयइयव्वं णाणुपेहाम्रो सव्वमावासयाई इ दव्वालंबणो वेरग्गजणियानो मणोवारणं ज्झायइ णिच्चल संकाइसल्लरहियो पसमत्थयादिगुणगणोवईयो पोराणवि णिज्जरा णिब्भवो -णमणग्धं ज्झाएज्जो तत्थ मइदुब्बलेण य
तविज्जाइरियविरहदो णाणावरणादिएणं य सरि-सुठ्ठज्जाणबुज्झज्जो ४८ -मवितत्थं तहाविहं अणुवगय
४६ -मोहा ण अण्णहा -लोगावाए ज्झाएज्जो लोगभागादि णयर भोई सयसावमीणं णाणमयकण्णहारं वर- ५७
चारित्तमयमहापोयं।
चलं तयं . जिया ण झाणोवरोहिणी समिय जो [तो] जत्थ' झाणे सुणिच्चल तहा[] यइयवं णाणुचिंतामो सद्धम्मावस्सयाई इ दढदव्वालंबणो वेरग्गनियतामो मणोधारणं झाइ सुनिच्चल संकाइदोसरहियो पसमत्थेज्जादिगुणगणोवेप्रो पोराणविणिज्जरं णिब्भो .-णमह[ण ग्घ' झाइज्जा तत्थ य मइदोब्लेणं तन्वि
हायरियविरहो णाणावरणोदएणं य सइ सुठ्ठ जं न बुज्झज्जा -मवितहं तहावि तं अणुवकय -मोहा य णण्णहा -लोयावामो झाइज्जा लोयभेयाई णरय भोयं सयसावयमणं अण्णाण-मारुएरियसंजोगविजोगवीइसंताणं।
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१. ध्या. श. में यहां 'जो' पद के असम्बद्ध होने से कोष्ठक में उसके स्थान में 'तो' पद की सम्भावना
प्रगट की गई है । पर धवला के निर्देशानुसार वह मूल में ही पाठ रहा है। २. यहां कोष्ठक में जो [प] पाठ की सम्भावना प्रगट की गई है वह भी धवला के उक्त पाठ से सिद्ध है। ३. गा. ३० की टीका में 'जनितः' यह पाठान्तर भी प्रगट किया गया है। ४. यहां अर्थ की संगति बैठाने के लिए जो 'ह' के स्थान में 'ण' की कल्पना की गई है वह धवला के
इस पाठ से सुसंगत है।