________________ 128 19 खेचरीमुद्रा-वाम भुजं दक्षभुजे दक्षिणं वामदेशतः निवेश्य योजयेत्पश्चात्परिवर्त्य क्रमेण हि // 33 // कनिष्ठानामिकायुग्मे तर्जनीभ्यां निराधयेत् / मध्यमे सरले कृत्वा योनिबत्सरलौ ततः // 34 // अगुष्ठौं खेचरी पार्थिवस्थानयोजिनी / पियेयं सर्वदेवानां खेचरत्वप्रदायिनी // 35 // 20 बीजमुद्रा-परिवाञ्जलिं कृत्वा कनिष्ठाग्रगते ततः / मध्यमे स्थापयदेवी कनिष्ठे धारयेत्ततः // 36 // अनामिकाभ्यां सुदृढ तर्जनीमध्यमायुगम् / अगुष्ठाभ्यां समायोज्यमर्धचन्द्राकृति प्रिये // 37 // बीजमुद्रेयमाख्याता सर्वानन्दकरी प्रिये / पश्यतां इयं सर्वत्रिखण्डा मुद्रा // 38 // 21 प्रासमुद्रा-ईषत्संकुचिता देवी ईषत्संश्लिष्टरूपिणः / अर्वाना अगुला देवी मुद्रा प्रासाभिधा भवेत् // 39 // कनिष्ठोनामयोर्मध्या तर्जन्योर्मध्यनाभयोः / कनिष्ठादित्रिषु तथा चतुर्वगुष्ठयोगतः // 40 // प्राणादिपञ्चसंख्याता मुद्रा ोया वरानने / एवमेष समाख्याती मयाऽादिविधिः क्रमात् // 41 // 22 बाणमुद्रा-यथा हस्तगतो बाणस्तथा हस्तं कुरु प्रिये / बाणमुद्रेयमाख्याता रिपुवर्गनिकृन्तनी // 42 //