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चक्रदत्तः।
[रक्तपित्ता
त्रिकटु, बेलका गूदा, हल्दी, दारुहल्दी, त्रिफला, दोनों | रक्तपित्त तथा ज्वरको नष्ट करते हैं। इससे विरेचन होता पुनर्नवा, नागरमोथा, लोहभस्म, पाढ़, वायविडंग, देवदारु, है ॥ ६ ॥ विछुवा, भारङ्गी-इन सबका कल्क बना कल्कसे चतुर्गुण घृत
. अधोगामि रक्तपित्तचिकित्सा । और घृतसे चतुर्गुण दूध और इतना ही जल मिलाकर पकाना . चाहिये । यह घृत मृत्तिकासे उत्पन्न समस्त विकारोंको नष्ट शालपादिना सिद्धा पेया पूर्वमधोगते । करता है ॥ ५६ ॥ ५७॥
वमनं मदनान्मिश्री मन्थः सक्षौद्रशर्करः ॥७॥ इति पाण्डुरोगाधिकारः समाप्तः।
अधोगामि-रक्तपित्तमें पहिले शालपादि लघुपञ्चमूलके जलसे सिद्ध पेया देनी चाहिये । फिर मैनफल, शहद और
शक्कर मिला पानीसे पतला कर पिलाना चाहिये । इससे वमन . अथ रक्तपित्ताधिकारः। होगा और अधोगामि-रक्तपित्त नष्ट होगा ॥ ७ ॥
पथ्यम्। रक्तपित्तचिकित्साविचारः। शालिषष्टिकनीवारकोरदूषप्रशातिकाः । नौद्रिक्तमादी संग्राह्यं बलिनोऽप्यश्नतश्च यत् ।
श्यामाकाश्च प्रियगुश्च भोजनं रक्तपित्तिनाम् ॥८॥
मसूरमुद्गचणकाः मकुष्ठाश्चाढकीफलाः। हृत्पाण्डुग्रहणीदोषप्लीहगुल्मज्वरादिकृत् ॥१॥ ऊर्ध्व प्रवृत्तदोषस्य पूर्व लोहितपित्तिनः।
प्रशस्ताः सूपयूषार्थ कल्पिता रक्तपित्तिनाम् ॥९॥
शाकं पटोलवेत्राग्रतण्डुलीयादिकं हितम् । अक्षीणबलमांसाग्नेः कर्तव्यमपतर्पणम् ॥२॥
मांसं लावकपोतादिशशैणहरिणादिजम् ॥१०॥ उर्ध्वगे तर्पणं पूर्व कर्तव्यं च विरेचनम् ।।
विना शुण्ठी षडंगेन सिद्धं तोयं च दापयेत् । प्रागधोगमने पेया वमनं च यथाबलम् ॥ ३॥
शालिके चावल, साठी, नीवार, कोदई, पसई, सावां, तर्पणं सघृतक्षौद्रलाजचूर्णैः प्रदापयेत् ।
काकुनका पथ्य-मसूर, मूंग, चना, मोथी, अरहरकी दालके ऊर्ध्वगं रक्तपित्तं तत्पीतं काले व्यपोहति ॥४॥
साथ देना चाहिये। तथा परवल, बेतकी कॉपल, चौराई जलं खजूरमृद्विकामधुकैः सपरूषकैः।
आदिका शाक और लवा, कबूतर, खरगोश तथा हरिणका. शृतशीतं प्रयोक्तव्यं तपणाथै सशर्करम् ॥५॥ मांस देना चाहिये । तथा षडंगकी औषधियोंसे सोंठ
कम कर पांच औषधियोंसे सिद्ध जल पीनेको देना बलवान् तथा पूर्ण भोजन करते हुए, रोगीके बढ़े हुए चाहिये ॥८-१०॥ रक्तपित्तको रोकना नहीं चाहिये । अन्यथा हृद्रोग, पाण्डरोग, ग्रहणी, प्लीहा, गुल्म, और ज्वरादि उत्पन्न कर देता
स्तम्भनावस्था । है। जिसका बल, मांस तथा अग्नि क्षीण नहीं है और क्षीणमांसबलं बालं वृद्धं शोषानुबन्धिनम् ॥११॥ ऊर्ध्वगामि-रक्तापत्त है, ऐसे रोगीको पहिले लंघन कराना। अवम्यमविरेच्यं च स्तम्भनैः समुपाचरेत् । चाहिये । जो क्षीणबलादि हो, उसे प्रथम तर्पण कराना चाहिये, जिसका बल, मांस क्षीण है, जो बालक वृद्ध अथवा राजफिर विरेचन कराना चाहिये । और जिसे अधोगामि-रक्तपित्त यक्ष्मासे पीडित और वमन तथा विरेचनके अयोग्य है, उसे है, उसे पहिले पेया पिलाकर फिर वमन कराना चाहिये । तर्प-स्तम्भनद्वारा रोकना चाहिये ॥ ११ ॥णके लिये खीलके सत्त बनाकर घी शहदके साथ चटानेसे | तर्पण होता तथा ऊर्ध्वगामिरक्तपित्त नष्ट होता है । तथा
स्तम्भकयोगाः। खजूर (छुहारा ), मुनक्का, मौरेठी और फाल्सासे सिद्ध। वृषपत्राणि निष्पीड्य रसं समधुशर्करम् ।। १२॥ जल शक्कर मिलाकर तर्पणके लिये पिलाना चाहिये ॥ १-५॥॥ पिबेत्तेन शमं याति रक्तपित्तं सुदारुणम् ।
आटरूषकनियूहे प्रियङ्गुर्पत्तिकालने । त्रिवृतादिमोदकः ।
विनीय लोधं सक्षौद्र रक्तपित्तहरं पिबेत् ॥ १३ ॥ त्रिवृता त्रिफला श्यामा पिप्पली शर्करा मधु। । वासाकषायोत्पलमृत्प्रियङ्गुमोदकः सन्निपातोर्वरक्तपित्तज्वरापहः॥६॥ ।
__लोध्राजनाम्भोरुहकेसराणि । निसोथ, त्रिफला, काला निसोथ, छोटी पीपल, शक्कर| पीतानि हन्युर्मधुशर्कराभ्यां और शहद इनसे बनाये गये मोदक सन्निपात, ऊर्ध्वग| पित्तासृजो वेगमुदीर्णमाशु ॥१४॥