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(४०) चक्रदत्तः।...
[ग्रहण्य
- न्न्न्न्न्न्न अजवाइन, पिपरामूल, दालचीनी, तेजपात, इलायची, त्रिकटु तथा त्रिफलाका कल्क एक पल, गुड़ एक पल, धृत नागकेशर, सोंठ, काली मिर्च, चीतकी जड़, नेत्रवाला, सफेद आठ पल, चतुर्गुण जल छोड़कर पकाना चाहिये । घृतमात्र शेष जीरा, धनियां, काला नमक-प्रत्येक एक भाग, अम्लवेत, रहनेपर उतार छानकर मात्रासे सेवन करना चाहिये ॥३८॥ धाथके फूल, छोटी पीपल, बेलका गूदा, अनारका छिल्का, तेंदू-प्रत्येक तीन तीन भाग, मिश्री छः भाग, कैथेका गूदा
मसूरघृतम् । आठ भाग ले कूट कपड़छान कर चूर्ण बनाना चाहिये । यह
__ मसूरस्य कषायेण बिल्वगर्भ पचेद् घृतम् । चूर्ण अतीसार, ग्रहणी, क्षय, गुल्म, गलेके रोग, कास, श्वास,
हन्ति कुक्ष्यामयान्सर्वान्प्रहणीपाण्डुकामलाः॥३९॥ अरुचि तथा हिक्काको नष्ट करता है ॥ ३०-३२ ॥
केवलं व्रीहिप्राण्यंगकाथो व्युष्टस्तु दोषलः । दाडिमाष्टकचूर्णम् ।
मसूरके काढ़ेके साथ कच्चे बेलके गूदेका कल्क छोडकर कर्षोंन्मिता तुगाक्षी दिकार्षिकम॥३३॥ पकाया गया घृत समस्त उदरविकार, ग्रहणी, पाण्डुरोग तथा व्योष पलांशिकम् ।
कामलाको नष्ट करता है। केवल धान्य या प्राण्यङ्ग (मांसादि)
कामलाको नष्ट करता पलानि दाडिमादृष्टौ सितायाश्चैकतः कृतः ।
होता है, अतः यह घृत
का क्वाथ बासी हो जानेसे दोषकारक होता है, अतः यह घृत गुणैः कपित्थाष्टकवच्चूर्णोऽयं दाडिमाष्टकः।। ३४॥
ताजा ही ( एक ही दिनमें ) पकाना चाहिये, कई दिन तक न
पकाते रहना चाहिये ॥३९॥वंशलोचन १ तोला, दालचीनी, तेजपात, इलायची, नागकेशर-प्रत्येक दो तोला, अजवाइन, धनियां, सफेद
शुण्ठीघृतम् । जीरा, पिपरामूल, त्रिकटु-प्रत्येक ४ तोला, अनारदाना ३२ तोला, मिश्री ३२ तोला, सबका विधिपूर्वक बनाया गया
विश्वौषधस्य गर्भेण दशमूलजले शृतम् । चूर्ण कपित्थाष्टकके समान लाभदायक होता है ॥ ३३ ॥ ३४ ॥
घृतं निहन्याच्छ्वयर्थै ग्रहणीसामतामयम् ॥४०॥
घृतं नागरकल्केन सिद्धं वातानुलोमनम् । वार्ताकुगुटिका।
ग्रहणीपाण्डुरोगन्नं प्लीहकासज्वरापहम् ॥४१॥ चतुष्पलं सुधाकाण्डाधिपलं लवणत्रयात ॥ ३५॥ दशमूलका काथ तथा सौंठका कल्क मिलाकर पकाया गया वार्ताकुकुडवश्वादिष्टौ द्वे चित्रकात्पले।
घृत सूजन तथा ग्रहण की सामताको नष्ट करता है। तथा केवल
घृत सूजन दग्धानि वार्ताकुरसे गुटिका भोजनोत्तराः ॥३६॥
| सोंठके कल्कसे भी सिद्ध किया गया घृत प्रहणी, पाण्डुरोग,
प्लीहा, कास, तथा ज्वरको नष्ट करता है ॥ ४०॥४१॥ भुक्तं भुक्तं पचन्त्याशु कासश्वासार्शसां हिताः । विषूचिकाप्रतिश्यायहृद्रोगशमनाश्च वाः ।। ३७॥
चित्रकघृतम् । थूहरकी लकड़ी १६ तोला, सेंधा नमक, काला नमक, सामुद्र |
चित्रकक्वाथकल्काभ्यां ग्रहणीनं शृतं हविः । नमक मिलाकर १२ तोला, सूखा बैंगन १६ तोला, आककी गुल्मशोथोदरप्लीहशूलाशानं प्रदीपनम् ॥ ४२ ॥ जड ३२ तोला, चीतकी जड़ ८ तोला, सब चीजें कूट ताजे| चित्रकके क्वाथ तथा कल्कसे सिद्ध किया गथा घृत ग्रहणी, बैंगनके रसमें मिला भंडियामें बन्दकर पकाना चाहिये । फिर गुल्म, सूजन, उदररोग, प्लीहा, शूल तथा अर्शको नष्ट करता उस भस्मको बैंगनके ही रसमें घोटकर एक मासेकी गोली और अग्निको दीप्त करता है ॥४२॥ बना लेनी चाहिये । भोजनके अनन्तर सेवन करनेसे भोजनको तत्काल पचाती हैं, तथा कास, श्वास, प्रतिश्याय, अर्श, विधू
बिल्वादिघृतम् । चिका और हृद्रोगको नष्ट करती हैं ॥३५-३७॥
"बिल्वाग्निचव्याकशृंगवेरज्यूषणादिघृतम् ।
काथेन कल्केन च सिद्धमाज्यम् ।
सच्छागदुग्धं ग्रणीगदोत्थत्र्यूषणात्रिफलाकल्के बिल्वमात्रे गुडात्पले ।
शोथाग्निमान्द्यारुचिनुद्वरिष्ठम् ॥४३॥ सर्पिषोऽष्टपलं पक्त्वा मात्रां मन्दानलः पिबेत्३८॥
बेलका गूदा, चीतकी, जड़, चव्य, अदरख, सोंठके क्वाथ
|तथा कल्क तथा बकरी के दूधके साथ सिद्ध किया गया घृत १ पहिले सब चीजोंका चूर्ण कूट छान लेना चाहिये, तब | ग्रहणीरोगसे उत्पन्न सूजन, अमिमांद्य तथा अरुचिको नष्ट करमिश्री मिलाना चाहिये।
'नेमें श्रेष्ठ है ॥४३॥