________________
'चक्रदतः।
[ अतिसारा
-
-
--
-
चौलाई अथवा जलपिप्पली, जामुनके पत्ते, अनारके
क्वाथान्तरम् । पत्ते, सिंघाड़ाके पत्ते, बेलका गूदा, सुगन्धवाला, नागरमोथा तथा सोंठका क्याथ · वेगयुक्त अतीसारको नष्ट |
कुटजत्वक्फलं मुस्तं काथयित्वा जलं पिबेत् । करता है ॥३५॥
अतीसारं जयत्याशु शर्करामधुयोजितम् ॥४२॥
कुड़ेकी छाल, इन्द्रयव, तथा नागरमोथाका क्वाथ शकर तथा नाभिपूरणम् ।
शहद मिलाकर पीनेसे अतीसार नष्ट होता है ॥ ४२ ॥ कृत्वालवालं सुदृढं पिष्टैमिलकैभिषक् ॥ ३६॥
बिल्वादिक्वाथः। आईकस्वरसेनाशु पूरयेनाभिमण्डलम् । नदीवेगोपमं घोरमतीसारं निरोधयेत् ॥ ३७ ॥
बिल्वचूतास्थिनियूहः पीतः सक्षौद्रशकरः। आमलोंको महीन पीसकर नाभिके चारों ओर मेड बांधनी निहन्याच्छद्येतीसारं वैश्वानर इवाहुतिम् ॥ ४३॥ चाहिये, फिर अदरखका रस नाभिमण्डलमें भर देना चाहिये।। कच्च बलका गूदा तथा आमकी गुठलीका काथ शकर तथा इससे नदीके वेगके समान बढ़ा हुआ अतिसार नष्ट होश
शहदके साथ पीनेसे आग्नि आहुतिके समान वमन तथा अतीजाता है॥३६॥३७॥
सारको नष्ट करता है ॥ ४३॥ किराततिक्तादिवाथः।
पटोलादिक्वाथः। किराततिक्तकं मुस्तं वत्सक सरसाञ्जनम् ॥ | पटोलयवधान्याकक्काथः पेयः सुशीतलः । पिबेत्पित्तातिसारनं सक्षौद्रं वेदनापहम् ॥ ३८॥ शर्करामधुसंयुक्तश्छद्यतीसारनाशनः ॥४४॥ चिरायता, नागरमोथा, कुड़ेकी छाल, तथा रसौतका
परवलके पत्ते, यव तथा धनियांका काथ ठण्डा कर शकर काथ शहद मिलाकर पीनेसे पीडायुक्त पित्तातिसार नष्ट हो तथा शहद मिलाकर पानसे वमन तथा अतीसार नष्ट होता जाता है । अथवा इसका चूर्ण बनाके शहद व चावलके जलसे | है ॥ ४४ ॥ सेवन करना चाहिये ॥३८॥
प्रियंग्वादिचूर्णम् । वत्सकबीजकाथः।
प्रियंग्वजनमुस्ताख्यं पापयेत्तु यथाबलम् । पलं वत्सकबीजस्य श्रपयित्वा जलं पिबेत् । । तृष्णातीसारछर्दिघ्नं सक्षौद्रं तण्डुलाम्बुना ॥ ४५ ॥ यो रसाशी जयेच्छीघ्रं स पैत्तं जठरामयम् ॥३९॥ फलप्रियंगु, रसौत तथा नागरमोथाका चूर्ण बनाके शहद तथा
एक पल इन्द्रयवका क्वाथ बनाकर पीने तथा मांस चावलके धोवनके साथ बलके अनुसार सेवन करनेसे प्यास, वमन रसके साथ भोजन करनेसे पैत्तिक अतीसार नष्ट हो जाता तथा अतीसार नष्ट होता है ॥४५॥
वातपित्तातिसारे कल्कः। मधुकादिचूर्णम् ॥
कलिंगकवचामुस्तं दारु सातिविषं समम् । मधुकं कट्रफलं लोधं दाडिमस्य फलत्वचम् ।
कल्क तण्डुलतोयेन पिबेत्पित्तानिलामयी ॥ ४६॥ पित्तातिसारे मध्वक्तं पाययेत्तण्डुलाम्बुना ॥४०॥
इन्द्रयव, वच दूधिया, नागरमोथा, देवदारु तथा अतीसका मौरेठी, कायफल, पठानी लोध, अनारका छिलका सब कल्क चावलके धोवनके साथ पीनेसे बातपित्तातिसारको नष्ट समान भाग ले, चूर्ण बना, शहद मिलाकर चटाना चाहिये | nrsm
और ऊपरसे चावलका धोवन जल पिलाना चाहिये, इससे पित्तातिसार नष्ट होता है ॥ ४० ॥
कुटजादिकाथः। कुटजादिचूर्ण काथो वा।
कुटजं दाडिमं मुस्तं धातकीबिल्ववालकम् । कुटजातिविषामुस्तं हरिद्रापणिनीद्वयम् । । लोध्रचन्दनपाठाश्च कषायं मधुना पिबेत् ।। ४७ ॥ सक्षौद्रशर्करं शस्तं पित्तश्लेष्मातिसारिणाम् ॥ ४१॥ सामे सशूले रक्तेऽपि पिच्छास्रावेषु शस्यते । कुड़ेकी छाल, अतीस, नागरमोथा, हलदी, दारुहलदी, कुटजादिरिति ख्यातः सर्वातीसारनाशनः ।। ४८ ।। माषपर्णी, मुद्रपर्णीका क्वाथ अथवा चूर्ण बनाकर शहद व कुडेकी छाल, अनारका छिलका, नागरमोथा, धायके फूल, मिश्री मिलाकर पीनेसे पित्तश्लेष्मातिसार नष्ट होता है॥४१॥बेलका गूदा, सुगन्धवाला, पठानी लोध, लाल चन्दन तथा पाढ़का