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धिकारः] .
भाषाटीकोपेतः।
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आमातिसारनचूर्णम् ।
नागरादिपानीयम्। त्र्यूषणातिविषाहिंगुबलासौवर्चलाभयाः। पीत्वोष्णेनाम्भसा हन्यादामातीसारमुद्धतम् ॥२५॥
नागरातिविषामुस्तैरथवा धान्यनागरैः।
तृष्णातीसारशूलनं पाचनं दीपनं लघु ॥३०॥ सोंठ, काली मिर्च, छोटी पीपल, अतीस, भूनी हांग, सोंठ, अतीस, नागरमोथा अथवा धनियां व सोंठसे सिद्ध खरेटी, काला नमक, बड़ी हरेका छिल्का कूट कपड़ छानकर किया जल प्यास, अतीसार तथा शुलको नष्ट करता है, हलका, गरम जलके साथ पीनसे उद्धत आमातीसार नष्ट होता है । पाचन तथा दीपन है ॥ ३० ॥ ( इसकी मात्रा ३ माशेसे ६ माशे तक है ) ॥ २५ ॥
. पाठादिकाथश्चूर्ण वा । पिप्पलीमूलादिचूर्णम् ।
पाठावत्सकबीजानि हरीतक्यो महौषधम् । अथवा पिप्पलीमूलपिप्पलीद्वयचित्रकान्। एतदामसमुत्थानमतीसारं सवेदनम् ॥ ३१ ॥ सौवर्चलवचाव्योषहिङ्गुप्रतिविषाभयाः ॥२६॥ कफात्मकं सपित्तञ्च वर्ची बध्नाति च ध्रुवम् । पिबेच्ल्छेष्मातिसारातश्चर्णिताश्चोप्णवारिणा । पाढ़, इन्द्रयव, बड़ी हर्रका छिल्का और सोठका चूर्ण अथवा अथवा पिपरामूल, दोनों पीपल, चीतकी जड़, काला नमक,
काथ कफ अथवा पित्तसे उत्पन्न पीड़ा सहित आमातिसारको नष्ट बच-दूधिया, सोंठ, मिर्च, पीपल, भूनी हींग, अतीस, हर्रका करता तथा मलको गाढ़ा करता है ॥ ३१॥ छिलका कूट कपड़ छानकर श्लेष्मातिसारसे पीड़ित रोगीको गरम
मुस्ताक्षीरम्। जलके साथ पीना चाहिये ॥ २६ ॥
पयस्युत्काथ्य मुस्तां वा विंशतिम्भद्रकाह्वयाः॥३२॥ __हरिद्रादिचूर्णम् ।
क्षीरावशिष्टं तत्पीतं हन्यादामं सवेदनम् ।
२. मोथेकी जड़ दूध तथा जल मिलाकर पकाना चाहिये. हरिद्रादिं वचादि वा पिबेदामेषु बुद्धिमाम् ॥२७॥ हारद्रादि वचादि वा पिबदामषु बुद्धिमान् ॥रणा दूध मात्र शेष रहनेपर पीनेसे पीडायुक्त आमातिसार नष्ट खडयूषयवागूषु पिप्पल्यादि प्रयोजयेत् । ।
होता है ॥ ३२॥आमातिसारमें हरिद्रादिगण (“ हरिद्रा दारुहरिद्र। कलशीकुटजबीजानि मधुकञ्चति") अथवा वचादिगण "(वचा मुस्ताति
संग्रहणावस्था। विषाभवाभद्दारु नागरश्चेति") का प्रयोग करना चाहिये। तथा पक्कोऽसकृदतीसारो ग्रहणी मार्दवाद्यदा ॥ ३३ ॥ खड़ चटनीयां, अचार, यूष, यवागू आदिमें पिप्पल्यादिगण | प्रवर्तते तदा कार्यः क्षिप्रं सांग्राहिको विधिः । (ज्वराधिकारोक्त) का प्रयोग करना चाहिये ॥२७॥
ग्रहणीके कमजोर हो जानेपर जब पके हुए दस्त बारबार
आते हैं, उस समय तत्काल संग्राहक औषधका प्रयोग करना खडयूषकाम्बलिको।
चाहिये ॥ ३३ ॥तके कपित्थचाङ्गेरीमरिचाजाजिचित्रकैः ॥२८॥
पञ्चमूल्यादिकाथश्चूर्ण वा । सुपकः खडयूषोऽयमयं काम्बलिकोऽपरः। दध्यम्लो लवणस्नेहतिलमाषसमन्वितः ॥२९॥
पञ्चमूलीबलाविश्वधान्यकोत्पलबिल्वजाः ॥ ३४ ५
वातातिसारिणे देयास्तऋणान्यतमेन वा। मढेमें कैथा, अमलोनियां, काली मिर्च, जीरा, चीतकी जड़ तथा यूष होनेसे मूंग भी छोड़ना चाहिये, तीक्ष्ण द्रव्य छःछः
लघुपञ्चमूल, खरेटी, सोंठ, धनियां, नीलोफर, बेलका गूदा,
| सबका चूर्ण बनाकर मटेके साथ अथवा अन्य किसी द्रव माशे, साधारण द्रव्य एक एक पल, तक एक प्रस्थ छोड़कर पकाकर छान लेना चाहिये । यह "खडयूष" कहा जाता है और
द्रव्यके साथ देना चाहिये । अथवा इनका काथ बनाकर पिलाना दही, लवण, स्नेह, तिल, उड़द मिलाकर पकाया गया " काम्ब
चाहिये ॥ ३४ ॥लिक" कहा जाता है ॥ २८ ॥ २९ ॥
कञ्चटादिकाथः।
कञ्चटजम्बूदाडिमशृङ्गाटकपत्रबिल्वहीबेरम् ॥ ३५॥ १ पिप्पल्यादिगणका पाठ सुश्रुतसंहितामें इसप्रकार है- जलधरनागरसहितं गङ्गामपि वेगिनी रुन्ध्यात् । " पिप्पलीपिप्पलीमूलचव्यचित्रकशृंगवेरमरिचहस्तिपिप्पलीहरेणु-1कैलाजमोदन्द्रयवपाठाजीरकसर्षपमहानिम्बफलहिगुभार्गीमधुरसा- १क्षीरपाकविधिः-" द्रव्यादष्टगुणं क्षीरं क्षीरान्नीर चतुतिविषावचाविडंगानि कटुरोहिणी चति" । “पिप्पल्यादिकहरः1र्गुणम् । क्षीरावशेषः कर्तव्यः क्षीरपाके त्वयं विधिः॥" प्रतिश्यायानिलारुची। निहन्याद्दीपनो गुल्मलनश्चामपाचनः॥'यहां दूध बकरीका लेना चाहिये।