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ऋय्य पुस्तकें - वैद्यकग्रन्थाः ।
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नाम.
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अष्टाङ्गहृदय - ( वाग्भट ) मूल, वाग्भटविरचित । इसमें सूत्रस्थान शारीरस्थान, निदानस्थान, चिकित्सास्थान, कल्पस्थान, उत्तरस्थान इत्यादिमें संपूर्ण रोगोंकी उत्पत्ति, निदान, लक्षण और क्वाथ, चूर्ण, रस, घी, तैल आदिसे अच्छी चिकित्सा वर्णित है - अष्टाङ्गहृदय - (वाग्भट ) भाषाटीकासहित । इस वाग्भटकृत मूलकी शिवदीपिका नामक भाषाटीका पटियाला राज्यके प्रधान चिकित्सक वैद्यर पं० रामप्रसादजी राजवैद्यके सुपुत्र पं० शिवशर्मा आयुर्वेदाचार्यजीने ऐसी सरल बनाई है कि जो सर्वसाधारणके परमोपयोगी है. अष्टाङ्गहृदय - (वाग्भट ) सूत्रस्थान - वाग्भटकृत मूल तथा अरुणदत्तकृत सर्वाङ्गसुन्दर, चन्दनदत्तकृत पदार्थचन्द्रिका, हेमाद्रिकृत आयुर्वेदरसायन और कठिन स्थलपर पटियाला - राजवैद्य वैद्यरत्न पं० रामप्रसादजीकृत टिप्पणीसहित. (शेष स्थान छप रहे हैं ) . अष्टाङ्गहृदय (वाग्भट ) सूत्रस्थान - वाग्भटविरचित तथा पटियाला राजवैद्य वैद्यरत्न पं० रामप्रसादजीके सुयोग्य पुत्र, विद्यालंकार शिवशर्मकृत भाषा - टीका और संदिग्ध विषयोंपर संस्कृत टिप्पणीसहित अमृतसागर - भाषा । इसमें सर्व रोगों के वर्णन और गुत्न हैं । इसके द्वारा बिना
गुरु वैद्य हो सकते हैं । ग्लेज कागज. अमृतसागर - भाषा । उपरोक्त रफ कागज अर्कप्रकाश- लंकापति रावणकृत )
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भाषाटीकासहित इसमें नाना प्रकारले यन्त्रोंसे ओषधियोंका अर्क खींचना और गुणवर्णन भले प्रकारसे किया गया है. अनुपान दर्पण-भाषाटीकासहित । इसमें रस धातु बनानेकी क्रिया और रोगा'नुसार औषधों के अनुपान वर्णित हैं.
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( बडी सूची अलग है सो मंगाकर देखिये )
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गङ्गाविष्णु श्रीकृष्णदास,
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लक्ष्मीवेङ्कटेश्वर " स्टीम् - प्रेस, कल्याण- बम्बई.
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