________________
भाषाकपितः ।
धिकारः ]
स्नेह, तथा क्वाथ्य ( जिनका काढा बनाया जाय ) औषधियोंकी मात्र पूर्णबलादि-युक्त के लिये ४ तोला, मध्यके लिये ३ तोला तथा हीनके लिये २ ताला की है ॥ ६३ ॥
क्वाथे जलमानम् ।
कर्षादौ तु पलं यावद्दद्यात् षोडशिकं जलम् । ततस्तु कुडवं यावत्तोयमष्टगुणं भवेत् ॥ ६४ ॥ क्वाथ्यद्रव्यपले कुर्यात्प्रस्थार्ध पादशेषितम् ।
एकै तोलेसे चार तोलातक औषधमें १६ गुणा जल छोडना ( इसमें द्रवद्वैगुण्यसे द्विगुण नहीं लिया जा सकता, क्योंकि इसमें कर्षसे ही वर्णन है ) चाहिये। एक पलसे ऊपर ४ पल - पर्यन्त अष्टगुणा जल छोडना चाहिये। (यह परिभाषा पेय क्वाथके लिये नहीं है। क्योंकि पीनेके लिये ४ तोलेसे अधिक क्वाथ्र्यका वर्णन कहीं नहीं है ) पूर्वोक्त परिभाषाको ही स्पष्ट करते हुए लिखते हैं । १ पल क्वाथ्य द्रव्य ३२ तोला द्रवद्वैगुण्यात् ६४ तोला जलमें पकाना चाहिये । चतुर्थांश शेष रहनेपर उतार छानकर पिलाना चाहिये ॥ ६४ ॥ *
मानपरिभाषा |
द्वात्रिंशन्माषकर्माषश्चरकस्य तु तैः पलम् ॥ ६५ ॥ अष्टचत्वारिंशता स्यात्सुश्रुतस्य तु माषकः । द्वादशभिर्धान्यमाषैश्चतुःषष्टया तु तैः पलम् ॥ ६६ ॥ एतच्च तुलितं पश्वरक्तिमाषात्मकं पलम् । चरकालोन्मानं चरके दशरक्तिकैः ॥ ६७ ॥ माषैः पलं चतुःषष्टया यद्भवेत्तत्तथेरितम् ।
( ७ )
• तस्मात्पलं चतुःषष्टया माषकैर्दशरक्तिकैः ॥ ६८ ॥ चरकानुमतं वैद्यैश्चिकित्सासूपयुज्यते ।
चरक के मत से
.३२ उडदोंका १
२ " रक्तिकादिषु मानेषु यावन्न कुडवो भवेत् । शुष्कद्रवायचापि तुल्यं मानं प्रकीर्तितम् "
माशा, ૪૮
१ थहां जो चरकका माशा ३२ उडदोंका बताया है। उसे १० रत्तीका न समझना चाहिये । क्योंकि १२ उड़द जब ५ रत्ती हुए तो २४ उड़द ही १० रत्ती होंगे । अतः दश रत्तीका माशा फर्जी हैं । २४ उड़दका मान कर ६४ माशेका पल माना है । अतः पलकी परिभाषा में चरकके सिद्धान्तसे २ भाग और सुश्रुतके सिद्धान्तसे १ भाग लिया जा सकेगा । आजकल के प्रचलित मानसे इस मानका निर्णय करना भी आवश्यक है । अतः उसे यहां पर लिख देना उचित समझता हूँ । चरकका पल ६४० रत्तीका हुआ, वर्तमान माशा ८ रत्तीका होता है, अतः ८० माशे हुए । १२ माशेका तोला होता है, ६ तोला ८ माशे हुए । इसीप्रकार सुश्रुतका पल ३२० रत्तीका और वह ३ तोला ४ माशाके बराबर हुआ । पर यहां पर टीका में जो मान स्थान स्थान पर दिया गया है वह इन दोनों मानोंसे भी कुछ भिन्न पर प्रचलित दिया गया है । वह इस प्रकार हैं, अनेक आचार्यों ने सुश्रुतके पांच रतीके माषाको ही ६ रतीका लिखा है । यथा शार्ङ्गधरः
|
"भिस्तु रक्तिकाभिः स्यान्माषको हेमधान्य कौ । माषैश्चतुर्भिः शाणः स्याद्धरणः स निगद्यते ॥ टंकः स एव कथितस्तद्द्वयं कोल उच्यते । कोलद्वयं च कर्षः स्यात् स प्रोक्तः पाणिमानिका " ॥ अर्थात् इनके सिद्धान्तसे ६ रत्ती = १ माषा । ४ माष (२४ रती ) = १ शाण । ४ शाण ( ९६ रत्ती ) = १ कर्ष । इस
१ वर्तमान समय में २ तो० ही उत्तम, १ तो० हीन और प्रकार इनके मतसे कर्ष ९६ रत्तीका हुआ । आजकल प्रचलित १॥ तो० मध्यम समझना चाहिये ।
इस सिद्धान्तसे रक्तिकासे कुडव पर्यन्त मानवाचक शब्दों का जहां प्रयोग होगा वहां समान ही द्रव तथा आर्द्र भी लिये जायँगे । इससे अधिक अर्थात् शराब आदि शब्दों से जहां वर्णन हो वहां, “ द्विगुणं तद्द्रवार्द्वयोः " इस सिद्धान्तसे द्रवादि द्विगुण लिये जाते हैं । अतएव पूर्वमें कर्ष मान है, अतः द्विगुण नहीं
( गवर्नमेण्टद्वारा भी निश्चित ( मान ८ रत्ती = १ माशा । १२ माशा ( ९६ रत्ती ) १ तोला इस प्रकार प्रचलित १ तोळा और पूर्वोक्त कर्ष दोनों ९६ रत्तीके होते हैं, अतएव बराबर हुए । अतः इसी सिद्धान्तसे टीका में पल ( ४ कर्ष ) = ४ तोला, कुडव ( १६ कर्ष ) = १६ तोला, प्रस्थ ( ६४ कर्ष ) = ६४ तोला, आढ़क ( २५६ कर्ष ) = २५६ तोला और प्रचलित सेर ८० तोलाका होता । इस प्रकार ३ सेर १६ तोला और लिया जाता। उत्तरार्द्धमं प्रस्थशब्दसे वर्णन है, अतः द्विगुण द्रोण १०२४ कर्ष = १२ सेर ६४ तोला । इसी प्रकार ५ लिया जाता है । क्वाथ मिट्टीके नवीन पात्रमें खुला मन्दाग्निपर पकाना चाहिये । * वर्तमान समयके लिये आधी मात्रा ही पर्याप्त होगी ।
छटाक
तोलेकी प्रचलित है, अतएव ६४ तोलेकी छटाकें बना लेनेपर १२ छ. ४ तो० अतः द्रोण = १२ सेर ६४ तोला या १२ सेर १२ छ. ४ तो० भी लिखा