________________
(२९८) चक्रदत्तः।
वि/मन्च
पुष्पं, रक्तचन्दनं, पञ्च वर्णध्वजाः, पञ्च प्रदीपाः, पंच | धूप करना चाहिये । “ॐ नमो नारायणाय मुञ्च मुञ्च स्वाहा " स्वस्तिकाः, पञ्च पुत्तलिकाः, मत्स्यमांससुराः, वायव्यां | यह मन्त्र पढ़ना चाहिये । तब बालक सुस्थ होता है ॥ ९८॥ दिशि बलिं दद्यात् । काकविष्ठागोमांसगोशृङ्गरसोन-I कालिकाचिकित्सा । माजीरलोमनिम्बपत्रघृतधूपयेत् । “ॐ नमो नाराय- द्वादशे दिवसे वर्षे वा यदि गृह्णाति कालिका नाम णाय चूर्णितहस्ताय मुञ्च मुञ्च स्वाहा” चतुर्थे दिवसे मातृका । तया गृहीतमात्रेण प्रथमं भवति ज्वरः । ब्राम्हणं भोजयेत्ततः स्वस्थो भवति बालकः ॥ ९७ ॥ विहस्य वादयति,करेण तर्जयति,गृह्णाति,क्रामति,निःश्व
दशवें दिन, महीने या वर्षमें निर्ऋतिका मातृका ग्रहण करती | सिति, मुहुर्मुहुर्छर्दयति, आहारं न करोति । बालं तस्य है। उसके ग्रहण करते ही पहिले वर आता है, शरीर कम्पाता प्रवक्ष्यामि येन सम्पद्यते शुभम् । क्षीरेण पुत्तलिकां कृत्वा है, चीत्कार करता है, रोते रोते दस्त व पेशाव हो जाता है। गन्धं, ताम्बूलं, शुक्लपुष्पं,शुक्लसप्तध्वजाः, सप्त प्रदीपाः, उसके लिये बाल कहते हैं । नदीके दोनों ओरकी मिट्टी ले सप्त पूपिकाः, करस्थेन दधिभक्केन · सर्वकर्मबलि पुतला बना गन्ध, ताम्बूल, लाल फूल, लाल चन्दन, पाँच दद्याच्छांत्युदकेन स्नापयेत् । शिवनिर्माल्यगुग्गुलुसर्षरङ्गकी पताकाएँ, पाँच दीपक, ५ स्वस्तिक, ५. पुत्तलियाँ, मछ
।“ॐ नमो नारायणाय मुश्च मुञ्च लियाँ, मांस व शराबकी वायव्य दिशामें बाल देनी चाहिये |
। हन हन स्वाहा " चतुर्थे दिवसे ब्राह्मणं भोजयेत्ततः और लशुन, बिल्लीके रोवें, काकविष्ठा, गोमांस, गोशंग, नामकी |
सुस्थो भवति बालकः ॥ ९९॥ पाती और घीसे धूप देनी चाहिये ।। ॐ नमो नारायणाय चूर्णितहस्ताय मुञ्च मुञ्च स्वाहा " यह मन्त्र पढना चाहिये।
बारहवें दिन, महीने या वर्षमें कालिका मातृका ग्रहण करती चौथे दिन ब्राह्मणूभोजन कराना चाहिये । तब बालक स्वस्थ
है। उसके ग्रहण करते ही ज्वर आता है । हँसकर तालियां होता है ॥९॥
| बजाता है, उठता है, पकड़ताहै, चलता है, श्वास लेता है,
बारबार वमन करता है, आहार नहीं करता । उसके लिये बलि पिलिपिच्छिलिकाचिकित्सा। कहते है । दूधके साथ पुतला बनाकर गन्ध, ताम्बूल, सफेद
| फूल, सफेद सात पताका, सात दीपक, ७ पुवा, तथा हाथमें एकादशे दिवसे मासे वर्षे वा यदि गृह्णाति पिलि.
| दही भात लेकर समस्त बलिकर्म करना चाहिये । शान्तिजलसे पिच्छिालिका नाम मातृका । तया गृहीतमात्रेण प्रथमं स्नान कराना चाहिये तथा शिवनिर्माल्य, गुग्गुल, सरसों और भवति ज्वरः। आहारंन गृह्णाति, ऊध्वेदृष्टिभेवति गात्र-घीसे धूप देनी चाहिये । “ओं नमोनारायणाय मञ्च मञ्च हुन भडो भवति। बलिं तस्य प्रवक्ष्यामियेन सम्पद्यते शुभम्। हन स्वाहा " यह मन्त्र पढ़ना चाहिये। चौथे दिन ब्राह्मणभीपिष्टकेन पुत्तलिकां कृत्वा रक्तचन्दनं रक्तं पुष्पं च जन कराना चाहिये। तब बालक स्वस्थ होता है ॥ ९९ ॥ तस्या मुखं दुग्धेन सिञ्चेत् । पीतपुष्पं, गन्धताम्बूलं, सप्त
इति बालरोगाधिकारः समाप्तः। पीतध्वजाः, सप्त प्रदीपाः, अष्टौ वटकाः, अष्टौ शष्कुलि
अथ विषाधिकारः। काः, अष्टौ पूरिकाः, मत्स्यमांससुराः पूर्वस्यां दिशि बलिर्दातव्यः । शान्त्युदकेन स्नानं शिवनिर्माल्यगुगुलुगोशृङ्गसर्पनिर्मोकघृतधूपयेत् । “ॐ नमो नारायणाय
सामान्यचिकित्सा। मुञ्च मुञ्च स्वाहा” चतुर्थदिवसे ब्राह्मणं भोजयेत्ततः
अरिष्टाबन्धनं मन्त्रः प्रयोगाश्च विषापहाः । सुस्थो भवति बालकः ॥९८ ॥
दशनं दशकस्याहेः फलस्य मृदुनोऽपि वा ॥ १॥ ग्यारहवें दिन महीने वर्ष में पिलिपिच्छिलिका मातृका ग्रहण | करती है। उसके ग्रहण करते ही पहिले ज्वर आता है, आहार पूर्वोक्त समस्त मन्त्रोंमें नारायणके स्थानमें “रावणाय" नहीं करता, आंखें निकालता है, शरीर टूटता है। उसके लिये अनेक प्रतियोंमें मिलता है । पर वह उत्तम नहीं प्रतीत होता । बलि कहते हैं । पिट्ठीकी पुत्तलिका बनाकर उसका मुख लाल| क्योंकि एक तो रावणको प्रणाम करनेकी लौकिक प्रथा नहीं, चन्दनसे रङ्गकर उसमें दूध छोड़ना चाहिये। तथा पीले फूल, दूसरे एक मन्त्रमें "चतुर्भुजाय " विशेषण भी आया है, जो कि गन्ध, तांबूल, सात पीली पताकाएँ, सात दीपक, आठ बड़े, विष्णुभगवानके लिये ही आता है । अतः "नारायणाय यही" ठीक आठ पूड़ियां आठ जलेबियां, मछली, मांस व शराबकी पूर्व-1 है। पर नारायणके लिये दूसरोंके मांस तथा शराब आदिकी दिशामें बलि देनी चाहिये । शान्तिजलसे स्नान कराना चाहिये बलि देना उचित नहीं प्रतीत होता, अतः द्विजातियोंको ऐसे तथा शिवनिर्माल्य, गुग्गुल, गोभंग, सांपकी केंचुल और घीसे पदार्थ पृथक् कर ही पूजन करना चाहिये।