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चक्रदत्तः।
[बालरोगा
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चाङ्गेरीघृतम्।
मान् व मेधावी होता है । इसे पीनेवाले बालकॉपर पिशाच,
राक्षस, भूत और माता आदि किसीका प्रभाव नहीं पड़ता। चाङ्गेरीस्वरसे सर्पिश्छागक्षीरसमे पचेत् ।
इसे" अष्टमङ्गल" कहते हैं ॥ ७८-८० ॥ कपित्थव्योषसिन्धूत्थसमंगोत्पलबालकैः ॥ ८१ ॥ सबिल्वधातकीमोचैः सिद्धं सर्वातिसारनुत् ।
लाक्षादितैलम् । ग्रहणीं दुस्तरां हन्ति बालानां तु विशेषतः॥७२॥
लाक्षारससमं सिद्धं तैलं मस्तु चतुर्गुणम् । चांगेरीके स्वरस ३ भाग, घी १ भाग, दूध १ भाग तथा
रास्नाचन्दनकुष्ठाब्दवाजिगन्धानिशायुगैः ॥८१ ॥ कैथा, त्रिकटु, सेंधानमक, लज्जालु, नीलोफर, सुगन्धवाला, बेल, धायके फूल, व मोचरसके कल्कसे सिद्ध घृत बालकोंके समस्त
शतावादारुयष्टयाह्वमूर्वातिक्ताहरेणुभिः । अतीसारों तथा दुष्ट ग्रहणीको नष्ट करता है । ७१॥७२॥ बालानां ज्वररक्षोनमभ्यगाद्वलवर्णकृत् ।। ८२॥
लाखके रसके समान, चतुर्गुण दहीके तोड़ और रासन, कुमारकल्याणकं घृतम् । .
चन्दन, कूठ, नागरमोथा, असगन्ध, हल्दी, दारुहल्दी, सौंफ, शङ्खपुष्पी वचा ब्राह्मी कुष्ठं त्रिफलया सह । | देवदारु, मारेठी, मूर्वा, कुटकी व सम्भालूके बीजके कल्कसे सिद्ध द्राक्षा सशर्करा शुण्ठी जीवन्ती जीरकं बला ॥७३/ तैलकी मालिश करनेसे बालकोंके ज्वर तथा राक्षसदोष नष्ट शठी दुरालभा बिल्वं दाडिमं सुरसास्थिरा। होते हैं ॥ ८१-८२॥ मुस्तं पुष्करमूलं च सूक्ष्मैला गजपिप्पली ।। ७४॥
ग्रहचिकित्सा। एवां कर्षसमैर्भागैर्वृतप्रस्थं विपाचयेत् । कषाये कण्टकार्याश्च क्षीरे तस्मिंश्चतुर्गुणे ॥ ७५ ॥
सहामुण्डितिकोदीच्यक्वाथस्नानं ग्रहापहम् । एतत्कुमारकल्याणघृतरत्नं सुखप्रदम् ।।
सप्तच्छदनिशाकुष्ठचन्दनैश्वानुलेपनम् ॥ ८३ ॥ बल वर्णकरं धन्यं पुष्टथग्निबलवर्धनम् ।
सर्पत्वग्लशुनं मूसिर्षपारिष्टपल्लवाः । छायासर्वग्रहालक्ष्मीक्रमिदन्तगदापहम् ।
बैडालबिडजालोममेषशृङ्गोवचामधु ।। ८४॥ सर्वबालामयहरं दन्तोद्भेदं विशेषतः ॥ ७७॥
धूपः शिशोवरन्नोऽयमशेषग्रहनाशनः । शंखपुष्पी, बच, ब्राह्मी, कूठ, त्रिफला, मुनक्का, शक्कर,
बलिशान्तीष्टकर्माणि कार्याणि ग्रहशान्तये ॥ ८५ ।। सोंठ, जीवन्ती, जीरा, खरेटी, कचूर, यवासा, बेल, अनार, . मन्त्रश्चायं प्रयोक्तव्यस्तत्रादौ सार्वकामिकः॥८६॥ तलसी. शालपर्णी, नागर मोथा, पोहकरमल, छोटी इलायची. मद्रपर्णी, मुण्डी, व सुगन्धवालाके क्वाथसे स्नान ग्रहदोषको व गजपीपल, प्रत्येक १ तोलेका कल्क, छोटी कटेरीका क्वाथ ६ नष्ट करता है। तथा सप्तपर्ण, हल्दी, कूठ, व चन्दनका अनुसेर ३२ तोला, दूध ६ सेर ३२ तो० मिलाकर १२८ तोला, लेप भी ग्रहदोषको नष्ट करता है । और सांपकी केंचुल, लहसुन, घी पकाना चाहिये । यह " कुमारकल्याण " नामक घृत बल व मूर्वा, सरसों, नीमकी पत्ती, विडालकी विष्ठा, बकरीके रोवां, वर्णको बढाता पुष्टि तथा अग्निको बढाता, ग्रहदोष, छाया, मेढाशिङ्गी, बच व शहदकी धूप बालकके ज्वर तथा समग्र क्रिमिदन्त तथा दांत उत्पन्न होनेके समय उत्पन्न होनेवाले रोगोंको ग्रहदोषोंको नष्ट करती है। तथा बलि, शान्ति व इष्टकर्म आदि विशेषतः नष्ट करता है ॥ ७३-७७॥
ग्रहशान्तिके लिये करना चाहिये । और धूप देनेके लिये यह
आगे लिखा सार्बकामिक मन्त्र पढना चाहिये ॥ ८३-८६ ॥ अष्टमङ्गलं घृतम् । वचा कुष्ठं तथा ब्राह्मी सिद्धार्थकमथापि च ।
सार्वकामिको मन्त्रः। शारिवा सैन्धवं चैव पिप्पलीघृतमष्टमम् ॥७८॥
|ॐ नमो भगवते गरुडाय त्र्यम्बकाय सद्यस्तवस्तुतः मेध्यं घृतामदं सिद्धं पातव्यं च दिने दिने ।
स्वाहा । ॐ कं पं टं शं वैनतेयाय नमः ॐ ह्रीं हूं दृढस्मृतिः क्षिप्रमेधाः कुमारो बुद्धिमान्भवेत् ॥७९॥ न पिशाचा न रक्षांसि न भूता न च मातरः।।
क्षः ॥ इति मन्त्रः। प्रभवन्ति कुमाराणां पिबतामष्टमङ्गलम् ॥८०॥ | बालदेहप्रमाणेन पुष्पमालां तु सर्वतः। बच, कूठ, ब्राह्मी, सरसों, शारिवा, सेंधानमक व छोटी पीप- प्रगृह्य मुच्छिकाभक्तबलियस्तु शान्तिकः। लके कल्कमें घृत और जल मिलाकर पकाना चाहिये । घृत बालककी देहके बराबर फूलोंकी माला लेकर भातसे सिद्ध हो जानेपर बालकको प्रतिदिन पिलाना चाहिये । यह भरे शिकोरेके चारों ओर लपेटकर बाल देना चाहिये । मेधाको बढ़ाता है। इसेक सेवनसे बालक स्मृतिमान, बुद्धि-और बलि देते समय नीचे लिखा मन्त्र पढना चाहिये ।