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धिकारः]
भाषाटीकोपेतः। सन्न्न्न्न्च्छ
न् जो बालक दांतसहित ही पैदा हो अथवा जिसके पहिले | भस्मको बासी जलमें मिलाकर पीना चाहिये । अथवा बरगदकी ऊपरके दांत निकलें, उसका पिता शान्ति करे तथा बालकको वौका हिम बनाकर मुखमें कवल धारण करना प्यासको शान्त दक्षिणाके सहित ब्राह्मणके लिये दान करे और नैगमेष ग्रहका करता है * ॥६१॥६२॥ पूजन करे ॥ ५५॥
नेत्रामयचिकित्सा। हिक्काचिकित्सा।
पिष्टैश्छागेन पयसा दा/मुस्तकगैरिकैः । पञ्चमूलीकषायेण सघृतेन पयः शृतम् ।
बहिरालेपनं शस्तं शिशोर्नेत्रामयापहम् ॥ ६३ ।। सशृङ्गवेरं सगुडं शीतं हिक्कार्दितः पिबेत् ॥५६॥ मनःशिला शंखनाभिः पिप्पल्योऽथ रसाजनम् । सुवर्णगरिकस्यापि चूर्णानि मधुना सह ।
वर्तिः क्षौद्रेण संयुक्ता बालस्याक्षिरुजाप्रणुत् ॥६४॥ लीदवा सुखमवाप्नोति क्षिप्रंहिक्कार्दितः शिशुः५७॥ मातृस्तन्यकटुस्नेहकाजिकैर्भावितो जयेत् ।। हिक्कासे पीड़ित बालक घी सहित पञ्चमूलके काढ़ेसे सिद्ध स्वेदाद्दीपशिखोत्तप्तो नेत्रामयमलक्तकः ।।६५॥ कर ठण्ढा किया दूध गुड़ व सोंठके साथ पावे । तथा सुनहले शुण्ठीभंगनिशाकल्कः पुटपाकः ससैन्धवः। गेरूके चूर्णको भी शहदके साथ चाटनेसे शीघ्र ही बालककी
कुकूणकेऽक्षिरोगेषु भद्रमाश्च्योतनं हितम् ॥६६॥ हिक्का शान्त होती है ॥५६॥ ५७ ॥
क्रिमिन्नालशिलादार्वीलाक्षाकाञ्चनगैरिकैः । चित्रकादिचूर्णम् ।
चूर्णाजनं कुकूणे स्याच्छिशूनां पोथकोषु च ॥६७॥ चित्रकं शृगवेरं च तथा दन्ती गवाक्ष्यपि ।
| सुदर्शनामूलचूर्णादजन स्यात्कुकूणके ॥ ६८ ॥
दाम्हल्दी, नागरमोथा और गेरूको बकरीके दूधमें पीसकर चूर्ण कृत्वा तु सर्वेषां सुखोष्णेनाम्बुना पिबेत् । -1.
आंखोंके बाहर लेप करनेसे बालकके नेत्ररोग शान्त होते हैं । श्वासं कासमथो हिक्कां कुमाराणां प्रणाशयेत् ५८॥
तथा मनशिल, शंखनाभि, छोटी पीपल, व रसौतको पीसकर चीतकी जड़, सोंठ, दन्ती व इन्द्रायणका चूर्ण कर कुछ गरम
बनायी गयी बत्तीको शहदमें मिलाकर लगानेसे समग्र नेत्ररोग जलके साथ पानसे बालकोंकी श्वास, कास, तथा हिक्का शान्त
नष्ट होते हैं । तथा माताके दूध, कडुआ तैल और काजीसे होती हैं ॥५॥
भावित वस्त्रको दीपशिखामें गरम कर सेकनेसे नेत्ररोग नष्ट होते . द्राक्षादिलेहः।
हैं। इसीप्रकार सोंठ, भांगरा, हल्दी और सेंधानमकका पुटपाक
कर आश्च्योतन करना कुकूणक (कुथुई ) तथा अन्य नेत्ररोगोंमें द्राक्षायासाभयाकृष्णाचूर्ण सक्षौद्रसर्पिषा।
लाभ करता है। तथा वायविडंग, हरिताल, मनशिल, दारुहल्दी, लीढं श्वासं निहन्त्याशु कासं च तमकं तथा ५९॥
लाख, सुनहले गेरूके चूर्णका अञ्जन बालकोंके कुकूणक तथा मुनक्का, जवासा, बड़ी हर्र व छोटी पीपलके चूर्णको शहद
पोथकी रोगमें लगाना चाहिये। कुकूणकमें सुदर्शनकी जड़के व घीके साथ चाटनेसे कास तथा तमक श्वास (दमा नामवालाचर्णका भी अजन किया जाता है।६३-६८॥ रोग ) नष्ट होते हैं ॥ ५९ ॥ पुष्करादिचूर्णम् ।
सिध्मपामादिचिकित्सा।
गृहधूमनिशाकुष्ठवाजिकेन्द्रयवैः शिशोः । पुष्करातिविषाशृङ्गीमागधीधन्वयासकैः ।
लेपस्तक्रेण हन्त्याशु सिध्मपामाविचिकाः ॥६९॥ तच्चूर्ण मधुना लीढं शिशूनां पञ्चकासनुत् ॥६९॥
घरका धुआँ, हल्दी, कूठ, असगन्ध और इन्द्रयवको मछेके पोहकरमूल, अतीस, काकड़ाशिंगी, छोटी पीपल व यवासाके |
साक|साथ पीसकर किये गये लेपसे सिध्म, पामा और विचर्चिकारोग चूर्णको शहदके साथ चाटनेसे समस्त कास नष्ट होते हैं ॥ ६॥ तृष्णाचिकित्सा।
- अश्वगन्धाघृतम् । . दाडिमस्य च बीजानि जीरकं नागकेशरम् ।
पादकल्केऽश्वगन्धायाः क्षीरे दशगुणे पचेत् । चूर्णितं शर्कराक्षौद्रलीढं तुष्णाविनाशनम् ॥ ६१॥ | घृतं पेयं कुमाराणां पुष्टिकृद्वलवर्धनम् ॥ ७॥ मायुरपक्षभस्म व्युषितजलं तेन भावितं पेयम् । असगन्धके चतुर्थांश कल्क और दशगुण दूधमें सिद्ध घृत तृष्णाघ्नं वटकाकुरशीतजलं वक्रशोषजिद्धृतं वके।६२/ बालकोंको पुष्ट तथा बलवान् करता है ॥ ७० ॥
अनारदाना, जीरा, व नागकेशरके चूर्णको शक्कर ब शहद मिलाकर चाटनेसे प्यास नष्ट होती है तथा मयूरके पंखकी *कुछ पुस्तकोंमें यहांसे ७२ श्लोकतकका पाठ महीं है।