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विकारः] भाषाटीकोपेतः।
(२८५) नन्द वृक्षादनी फ्यस्या च तथैवोत्पलशारिवा। कशेरू, सिंघाड़ा, जीवनीयगणकी ओषधियां, कमल, नीलोफर, अनन्ता शारिवा रास्ता पद्मामधुकमेव च ॥ २॥ एरण्ड शतावरीसे सिद्ध ध शक्कर मिलाकर पीनेसे शूलसहित बृहतीद्वयकाश्मर्यक्षीरिशुङ्गास्त्वचो घृतम् ।
गर्भको स्थापित करता है ॥९॥ पृथक्पर्णी बला शिग्रु श्वदंष्ट्रा मधुयष्टिका ॥ ३॥
____ कशेरुकादिचूर्णम् । शृङ्गाटकं बिसं द्राक्षा कशेरु मधुकं सिता।
कशेरुशृङ्गाटकपद्मकोत्पलं मासेषु सप्त योगाः स्युरर्धश्लोकास्तु सप्तसु ॥४॥
समुद्गपर्णीमधुकं सशर्करम् । यथाक्रमं प्रयोक्तव्या गर्भस्रावे पयोऽन्विताः।
सशूलगर्भस्रुतिपीडिताङ्गना कपित्थबिल्वबृहतीपटोलेक्षुनिदिग्धिकाः ॥५॥ ।
पयोविमिश्रं पयसानभुक् पिबेत् ॥ १०॥ मूलानि क्षीरसिद्धानि दापयद्भिषगष्टमे ।
कशेरू, सिंघाड़ा, पद्माख, नीलोफर, मुद्रपर्णी, मौरेठीको दूधमें । नवमे मधुकानन्तापयस्याशारिवाः पिबेत् ॥ ६॥ |
पका शक्करके साथ मिला शूल तथा गर्भस्रावसे पीड़ित स्त्री पयस्तु दशमे शुण्ठथा शृतशीतं प्रशस्यते । सेवन करे तथा दूधके साथ भात खावे ॥१०॥ गर्भवतीको गर्भस्रावकी शङ्का होनेपर पहिले महीनेमें मौरेठी,
शुष्कगर्भचिकित्सा। शाकबीज, क्षीरकाकोली, देवदारु । दूसरे महीनेमें अश्मन्तक, काले तिल, मजीठ, शतावरी । तीसरे महीनेमें वांदा, क्षीर- गर्भ शुष्क तु वातेन बालानां चापि शुष्यताम् । काकोली, काली सारिवा । चौथे महीनेमें अनन्ता, शारिवा, सितामधुककाश्यर्हितमुत्थापने पयः ।। ११ ।। रासन, भारङ्गी, मोरेठी। पांचवें महीनेमें छोटी बड़ी कटेरी, गर्भशोषे त्वामगर्भाः प्रसहाश्च सदा हिताः । खम्भार, दूधवाले वृक्षोंके अङ्कुर और छाल तथा घृत । छठे
वातसे गर्भके सूखनेपर तथा बालकोंके सूखनेपर मिश्री,मौरेठी महीनेमें पृष्ठपर्णी, खरेटी, सहिजन, गोखुरू, मौरेठी । सातवें व खम्भारसे सिद्ध दूध पोषण करता है तथा गर्भके सूखनेपर कच्चे महनिमें सिंघाड़ा, कमलक तन्तु, मुनक्का, कशेरू, मौरेठी, गर्भ तथा प्रसह प्राणियों के मांसरस उत्तम होते हैं ॥११॥ मिश्री। इन आधे आधे श्लोकमें वर्णित सात योगोंका गर्भस्रावको रोकनेके लिये दूधके साथ प्रयोग करना चाहिये। तथा कैथा,
सुखप्रसवोपायाः। बेल, बड़ी कटेरी, परवल, ईख व छोटी कटेरीकी जड़ दूधमें पाठा लाङ्गलिसिंहास्यमयूरकजटैः पृथक् ॥१२॥ सिद्ध कर आठवें महीनेमें । नवम मासमें मौरेठी, यवासा, क्षीर
नाभिबस्तिभगालेपात्सुखं नारी प्रसूयते । विदारी, शारिवा तथा दशममासमें सोंठसे सिद्ध कर ठण्ढा किया
परूषकस्थिरामुललेपस्तद्वत्पृथक् पृथक् ॥ १३ ॥ दूध देना चाहिये ॥ १-६ ॥
वासामूले दुतं तद्वत्कटिबद्धे प्रसूयते । अपरे प्रयोगा।
पाठायास्तु शिफां योनी या नारी संप्रधारयेत् १४॥ सक्षीरा वा हिता शुण्ठी मधुकं देवदारु च्च ॥ ७ ॥
उरःप्रसवकाले च सा सुखेन प्रसूयते । एवमाप्यायते गर्भस्तीत्रा रुक् चोपशाम्यति ।
तुषाम्बुपरिपिष्टेन मूलेन परिलेपयेत् ॥ १५ ॥ कुशकाशोरुबूकानां मूलैगोक्षुरकस्य च ।
लाङ्गल्याश्चरणी सूते क्षिप्रमेतेन गर्भिणी। शृतं दुग्धं सितायुक्तं गर्भिण्याः शूलनुत्परम् ॥८॥
आटरूषकमूलेन नाभिबस्तिभगालेपः कर्तव्यः॥९६
गृहाम्बुना गेहधूमपानं गर्भापकर्षणम् । दूधके साथ मौरेठी, सोंठ और देवदारु' देना चाहिये । इस
मातुलुङ्गस्य मूलानि मधुकं मधुसंयुतम् ।। १७ ॥ तरह गर्भ बढ़ता है और तीव्र पीड़ा शान्त होती है। इसी प्रकार कुश, काश एरण्ड व गोखुरूकी जड़से सिद्ध कर ठण्ढ़ा किया दूध
घृतेन सह पातव्यं सुखं नारी प्रसूयते ॥ १८ ॥ मिश्री मिलाकर देनेसे गर्भिणीका शूल नष्ट होता है ॥ ७ ॥८॥
पुटदग्धसर्पकञ्चुक
मसृणमसी कुसुमसारसहिताजिताक्षी । कशेरुकादिक्षीरम् ।
झटिति विशल्या जायेत कशेरुशृङ्गाटकजीवनीय
. गर्भवती मूढगर्भापि ॥१९॥ पद्मोत्पलेरण्डशतावरीभिः।
गृहाम्बुना हिंगुसिन्धुपानं गर्भापकर्षणम् सिद्धं पयः शर्करया विभिनं
पाढ़, कलिहारी, वासा व अपामार्ग इनमेंसे किसी एककी जड़ संस्थापयेद्गर्भमुदीर्णशूलम् ॥ ९॥ पीसकर नाभि, बस्ति और भगमें लेप करनेसे सुखपूर्वक स्त्रीक