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धिकारः] ... भाषाटीकोपेतः।
(२२९)
जन्न्न्न्न्न हरेणवो मसूराश्च मुद्गाश्चैव सशालयः।
आरग्वधस्य पत्राणि त्वचः श्लेष्मातकोद्भवाः । पृथक्पृथक्प्रदेहाः स्युः सर्वैर्वा सर्पिषा सह ॥११॥ शिरीषपुष्पं कामाची हिता लेपावचूर्णनैः ॥ १७ ॥
पुण्डरिया, मजीठ, पद्माख, खश, चन्दन, मौरेठी तथा| त्रिफला, पद्माख, खश, लज्जालु, कनेर, मैनफलकी जड़ नीलोफरको दूधमें पीसकर लेप करना चाहिये । अथवा कशेरू, तथा यवासाका कफज-विसर्पनाशार्थ प्रयोग करना चाहिये। सिंघाड़ा, कमलके फूल, गुर्च, सेवार, नीलोफर तथा उसके तथा अमलतासके पत्ते, लसोड़ेकी छाल, सिरसाके फूल व पासका कीचड़ इनको धीमें मिला पतले कपड़ेपर शीत लेप मकोयका लेप व अवचूर्णन द्वारा प्रयोग करना चाहिये॥१६॥१७॥ करना चाहिये । पञ्चवल्कल अथवा पद्माख, खश, मौरेठी व
त्रिदोषजविसर्पचिकित्सा। चन्दनसे लेप करना चाहिये। पित्तमें कमलिनीका कीचड़ अथवा
कल्क अथवा गुर्चकी जड़ अथवा शुक्ति मुस्तारिष्टपटोलानां काथः सर्वविसर्पनुत् । अथवा घीके साथ गेरू अथवा बरगदकी वौं व गुर्च अथवा
धात्रीपटोलमुद्गानामथवा घृतसंप्लुतः ॥१८॥ केलेका सार अथवा कमलकी दण्डीका लेप सो वार घोये हुए| नागरमोथा. नीमकी छाल व परवलकी पत्तीका काथ घीके साथ अथवा मटर, मसूर, मूग, चावल अलग अलग समस्त विसपोंको नष्ट करता है। अथवा आंवला, परवल और अथवा सब मिलाकर घीके साथ लेप करना चाहिये ॥६-११॥ मंगका काथ घीके साथ समस्त विसर्प नष्ट करता है ॥ १८॥ विरेचनम् ।
अमृतादिगुग्गुलुः । द्राक्षारग्वधकाश्मयेत्रिफलैरण्डपीलुभिः।
अमृतवृषपटोलं निम्बकल्कैरुपेतं त्रिवृद्धतिकीभिश्च विसर्प शोधनं हितम् ॥ १२॥ त्रिफलखदिरसारं व्याधिघातं च तुल्यम् । मुनक्का, अमलतास, खम्भार, त्रिफला, एरण्ड, पील, निसोथ कथितमिदमशेषं गुग्गुलोर्भागयुक्तं तथा हरोंको विरेचनके लिये देना चाहिये ॥ १२ ॥
जयति विषविसर्पान्कुष्ठमष्टादशाख्यम् १९॥ श्लेष्मजविसर्पचिकित्सा।
गुर्च, अडूसा, परवल, नीमकी पत्ती, त्रिफला, कत्था, गायत्रीसप्तपर्णाब्दवासारग्वधदारुभिः ।
| अमलतासका गूदा प्रत्येकः समान भाग, सबके समान शुद्ध
गुग्गुल मिलाकर सेवन करनेसे विषदोष, विसर्प तथा अठारह कुटन्नटैर्भवेल्लेपो विसर्प श्लेष्मसम्भवे ॥१३॥
प्रकारके कुष्ठ नष्ट होते हैं ॥ १९॥ अजाश्वगन्धा सरलाथ काला सैकेशिका वाप्यथवाजशृङ्गी।
अमृतादिकाथद्वयम् । गोमूत्रपिष्टो विहितः प्रलेपो
अमृतवृषपटोलं मुस्तकं सप्तपर्ण हन्याद्विसपै कफजं सुशीघ्रम् ॥ १४ ॥ ___ खदिरमसितवेत्रं निम्बपत्रं हरिद्रे । कत्था, सतीना, नागरमोथा, अडूसा, अमलतासका गूदा,
विविधविषविसर्पान्कुष्ठविस्फोटकण्डूदेवदारु व केवटीमोथेका लेप कफज-विसर्पमें करना चाहिये।
रपनयति मसूरी शीतपित्तं ज्वरं च ॥२०॥ अथवा बबई, असगन्ध, धूप, काला निसोथ, पाढी, अथवा
पटोलामृतभूनिम्बवासकारिष्टपर्पटैः मेढाशिंगी इनको गोमूत्रमें पीसकर कफजमें लेप करना खदिराब्दयुतैःकाथो विस्फोटार्तिज्वरापहः ॥२१ चाहिये ॥ १३ ॥ १४ ॥
(१) गुर्च, अडूसा, परवल, नागरमोथा, सप्तपर्ण, कत्था, काला - वमनम् ।
वेत, नीमकी पत्ती, हल्दी तथा दारुहल्दीका क्वाथ अनेक मदनं मधुकं निम्बं वत्सकस्य फलानि च ।
प्रकारके विष, विसर्प, कुष्ठ, विस्फोटक, खुजली, मसूरी, शीत
पित्त और ज्वरको नष्ट करता है । इसी प्रकार (२) परवल, वमनं च विधातव्यं विस कफसम्भवे ॥१५॥
गुर्च, चिरायता, अडूसा, नीमकी पत्ती, पित्तपापड़ा, कथा, मैनफल, मौरेठी, नीमकी छाल तथा इन्द्रयवको कफज-नागरमोथाका क्वाथ, फफोला, बेचैनी व ज्वरको नष्ट बिसर्पमें वमनके लिये प्रयुक्त करना चाहिये ॥१५॥ करता है ॥२०॥२१॥ अन्ये योगाः।
पटोलादिक्वाथः। त्रिफलापनकोशीरसमझाकरवीरकम् । । पटोलत्रिफलारिष्टगुडूचीमुस्तचन्दनः। फलमूलमनन्ता च लेपः श्लेष्मविसर्पहा ॥ १६॥। समूर्वा रोहिणी पाठा रजनी सदुरालभा ॥२२॥