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धिकारः]
भाषाटीकोपेतः।
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वासामुष्ककपाटलाः सलवणा दग्ध्वा जले पाचितं प्लीहा, कुष्ठ और अर्श व शोथसे पीड़ित पुरुषको सेवन करना हिंग्वादिप्रतिवापमेतदुदितं गुल्मोदराष्ठीलिषु॥४७॥ चाहिये ॥ ४९ ॥ ५० ॥ अरणी, एरण्ड अथवा जामुनकी छाल, कुड़की छाल, आक,
कांकायनगुटिका। सहिंजनेकी छाल, बड़ी कटेरी, थूहर, बेलकी छाल, भिलावांकी छाल, छोटी कटेरी, ढाक, नीमकी छाल, लटजीरा, कदम्ब,
शटी पुष्करमूलं च दन्ती चित्रकमाढकीम् । चीतेकी जड़, अडूसा, मोखा, पाढ़ल, इनमें नमक डालकर |
शृङ्गवेरं वां चैव पलिकानि समाहरेत् ।। ५१ ।। सबको जला भस्म कर ६ गुन जलमें मिला २१ बार छानकर | क्षारविधिसे पकाना चाहिये । तैयार हो जानेपर भुनी हींग, |
त्रिवृतायाः पलं चैव कुर्यात् त्रीणि च हिगुनः। यवाखार, काला नमक आदिका प्रतिवाप छोड़कर उतारना।
यवक्षारपले द्वे च द्वे पले चाम्लवेतसात् ॥ ५२ ।। चाहिये । इसका गुल्म, उदर तथा पथरीमें प्रयोग करना यमान्यजाजी मरिचं धान्यकं चेति कार्षिकम् । चाहिये ॥४७॥
उपकुच्यजमोदाभ्यां तथा चाष्टमिकामाप ॥५३।। हिंग्वादिभागोत्तरचूर्णम् ।
मातुलुङ्गरसेनव गुटिकाः कारयेद्भिषक् ।
तासामेकां पिबेद् द्वे च तिस्रो वापि सुखाम्बुना५४ हिंगूप्रगन्धाबिडशुण्ठयजाजी
अम्लैश्च मधhषैश्च घृतेन पयसाऽथवा । ___ हरीतकीपुष्करमूलकुष्ठम् । भागोत्तरं चूर्णितमेतदिष्टं
एपा काङ्कायनेनोक्ता गुडिका गुल्मनाशिनी ॥५५॥
अशीहृद्रोगशमनी क्रिमीणां च विनाशिनी । · गुल्मोदराजीर्णविषूचिकासु ।। ४८ ॥
गोमूत्रयुक्ता शमयेत् कफगुल्मं चिरोत्थितम् ॥५६॥ भुनी हींग १ भाग, बच २ भाग, विड नमक ३ भाग, क्षीरेण पित्तगुल्मं च मयेरम्लैश्च वातिकम् ।। सोंठ ४ भाग, जीरा ५ भाग, हरै ६ भाग. पोहकरमूल ७ भाग
त्रिफलारसमूत्रैश्च नियच्छेत् सान्निपातिकम् । कूठ ८ भाग, सबका चूर्ण कर गुल्म, उदररोग, अजीर्ण और |
रक्तगुल्मे च नारीणामुष्ट्रोक्षीरेण पाययेत् ॥ ५७ ॥ विषूचिकामें प्रयोग करना चाहिये ॥ ४० ॥
कचर, पोहकरमल, दन्ती, चीतकी जड. अरहर, सोंठ तथा त्रिफलादिचूर्णम् ।
बच प्रत्यक ४ तोला, निसोथ ४ तोला, भुनी हींग १२ तोला, त्रिफलाकाञ्चनक्षीरीसप्तलानीलिनीवचाः। |यवाखार ८ तोला, अम्लवेत ८ तोला, अजवायन, जीरा, मिर्च त्रायन्तीहपुषातिक्तात्रिवृत्सैन्धवपिप्पलीः ॥४९॥ धनियां प्रत्येक १ तोला, कलौंजी तथा अजमोद प्रत्येक २ पिबेत्संचूर्ण्य मूत्रोष्णवारिमांसरसादिभिः। तोला, सबका चूर्ण कर विजौरे निम्बूके रससे गोली बना लेनी सवेगुल्मोदरप्लीहकुष्ठाशेः शोथखेदितः ॥५०॥ चाहिये । इनमेंसे १ या २ या ३ गोलियोंका गरम जल, काजी,
मद्य, यूष, घृत अथवा दूधके साथ सेवन करना चाहिये । यह. त्रिफला, स्वर्णक्षीरी, सातला, नील, बच,त्रायमाण, हाऊबर | कांकायनकी बतायी हुई गोली गुल्म अर्श तथा हृद्रोगको शान्त कुटकी, निसोथ, सेंधानमक तथा छोटी पीपल सबका चूर्ण कर करती और कीडोंको नष्ट करती है । गोमूत्रके साथ पुराने कफज गोमूत्र, गरम जल अथवा मांसरसके साथ सर्वगुल्म, उदररोग, गुल्मको धके साथ पित्तज गुल्मको, मद्य तथा काजीके साथ
|वातज गुल्मको, त्रिफलाके क्वाथ व गोमूत्रके साथ सानिपातिक १नाइयो" भूमिजम्बू, अरणी, नारङ्गी, भूम्यामल, एरण्ड गुल्मको तथा ऊंटनीक दूधके साथ स्त्रियोंके रक्तगुल्मको नष्ट काश और जलवेतके लिये आता है तथा यह पानीयक्षार है, | करती है ॥ ५१-५७ ॥ अतः उसकी विधि इस प्रकार शिवदासजीने लिखी है-नादेयी आदे जला, एक आढक या एक तोला भस्म ले चतुर्गुण या
हपुषाद्य घृतम् । षड्गुण जलमें २१ बार छान पकाकर चतुर्थोश शेष रहनेपर
हपुषाव्योषपृथ्वीकाचव्यचित्रकसैन्धवैः । उतारकर फिर २१ बार छानकर रखना चाहिये । इसका १ कर्ष या २ कर्ष उसीके अनुसार चतुर्थीश हिंग्वादि प्रतीवाप
__ साजाजीपिप्पलीमूलदीप्यकविपचेद् घृतम् ॥५८॥ छोड़ना चाहिये । और फिर उसे मांस, घी या दूधसे किसी
सकोलमूलकरसं सक्षीरं दधि दाडिमम् । एकमें छोड़कर पीना चाहिये । कुछ आचार्योंका सिद्धान्त है कि तत्परं वातगुल्मन्नं शूलानाहविबन्धनुत् ।। ५९ ॥ रखनेसे क्षार जल अम्लतामें परिणत हो जायगा, अतः प्रतिदिन योन्यर्थीग्रहणीदोषश्वासकासाऽरुचिज्वरम् । पीने योग्य पका लेना चाहिये ॥
पार्श्वहद्वस्तिशूलं च घृतमेतद्वधपोहति ॥ ६०॥