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(१५८)
चक्रदत्तः।
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सौवर्चलादिगुटिका।
तिलैश्च गुडिकां कृत्वा भ्रामयेज्जठरोपरि । सौवर्चलाम्लिकाजाजीमरिचैर्द्विगुणोत्तरैः।
गुडिका शमयत्येषा शूलं चैवातिदुःसहम् ॥१६॥ मातुलुङ्गरसैः पिष्ट्वा गुडिकानिलशूलनुत् ॥ १२॥
नाभिलेपाजयेच्छूलं मदनः काजिकान्वितः।
जीवन्तीमूलकल्को वा सतैलः पार्श्वशूलनुत् ॥१७॥ काला नमक १ भाग, इमली २ भाग, जीरा सफेद ४ भाग, काली मिर्च भाग ले चणकर बिजौरे निंबके रसमें गोली बना। बेलकी छाल, तिल तथा एरण्डकी छालको काखीके साथ लेनी चाहिये। यह वातशूलको नष्ट करती है ॥ १२॥ पीस गरम कर गुनगुनी गुनगुनी गोली पेटपर फिरानेसे शूल नष्ट
होता है। इसी प्रकार काले तिलको पीस गोली बना गरम कर हिंग्वादिगुटिका।
पेटपर फिरानेसे वातजन्य शूल नष्ट होता है। इसी प्रकार मैनहिङ्ग्वम्लबेतसव्योषयमानीलवणत्रिकैः । फलका चूर्ण काजीमें मिला गरम कर नाभीपर लेप करनेसे अथवा बीजपूररसोपेतैर्गुडिका वातशूलनुत् ॥ १३ ॥ जीवन्तीकी जड़का कल्क तैल मिलाकर लेप करनेसे पसलियोंका
दर्द नष्ट होता है ॥ १५-१७ ॥ भुनी हींग, अम्लवेत, सोंठ, मिर्च, छोटी पीपल, अजवाइन, तीनों नमक, समान भाग ले चूर्ण कर
पित्तशलचिकित्सा। बिजौरे निम्बूके रसमें गोली बनाकर सेवन करनेसे वातशुल नष्ट | गुडः शालिर्यवाः क्षीरं सर्पिष्पानं विरेचनम् । होता है ॥१३॥
जाङ्गलानि च मांसानि भेषजं पित्तशूलिनाम्॥१८॥ ... बीजपूरकमूलयोगः।
पैत्ते तु शूले वमनं,पयोभीबीजपूरकमूलं च घृतेन सह पाययेत् ।
रसैस्तथेक्षोः सपटोलनिम्बैः। जयेद्वातभवं शूलं कर्षमेकं प्रमाणतः ॥ १४॥
शीतावगाहाः पुलिनाः सवाताः १ तोला बिजौरे निम्बूकी जड़का चूर्ण अथवा कल्क घीके |
कांस्यादिपात्राणि जलप्लुतानि ॥ १९ ॥ साथ पिलानेसे वातशूल नष्ट होता है ॥ १४ ॥
विरेचनं पित्तहरं च शस्तं
रसाश्च शस्ताः शशलावकानाम् । स्वेदनप्रयोगाः।
सन्तर्पणं लाजमधूपपन्नं बिल्वमूलतिलैरण्डं पिष्ट्वा चाम्लतुषाम्भसा । योगाः सुशीता मधुसंप्रयुक्ताः ॥ २० ॥ गुडिको भ्रामयेदुष्णां वातशुलविनाशिनीम् ॥१५॥ छी ज्वरे पित्तभवेऽपि शूले
घोरे विदाहे त्वतितर्षिते च । -हन्त्यम्लपित्तमरुचि रक्तपित्तं क्षयं वमिम् ॥शूलं च पित्तशुलं च यवस्य पेयां मधुना विमिश्रां पृष्ठरुग्नं रसायनम् । विशेषाद्वलकृद् वृष्यं पुष्टिमोजस्करं स्मृतम्॥"
पिबेत्सुशीतां मनुजः सुखार्थी ।। २१ ॥ अच्छे पके हुए ताजे नारिकेल (नारियल ) की गिरी १६
धाच्या रसं विदार्या वा त्रायन्ती गोस्तनाम्बु वा । तोला प्रथम खूब महीन कतर या घिया कससे कसकर ४
पिबेत्सशर्करं सद्यः पित्तशूलनिषूदनम् ॥ २२ ॥ तोला गायके घोमें भूनना चाहिये । जब सुखी आ जावे
शतावरीरसं क्षौद्रयुतं प्रातः पिबेन्नरः। तथा सुगन्ध उठने लगे, तब उसमें मिश्री १६ तोला तथा नारियलका जल १ सेर, ९ छ. ३ तो० डालकर पकाना
___ दाहशूलोपशान्त्यर्थं सर्वपित्तामयापहम् ॥ ३३ ॥ चाहिये। गाढ़ा हो जानेपर उतार लेना चाहिये तथा ठण्डा हो, गुड़, शालिके चावल, यव, दूध, घीपान, विरेचन तथा जानेपर धनियां, छोटी पीपल, नागरमोथा, दोनों जीरा, वंशलो-जांगल प्राणियोंके मांस पित्तशूलघालोंको सेवन करना चाहिये । चन, दालचीनी, तेजपात, इलायची तथा नागकेशर प्रत्येक ३ पैत्तिक शूलमें परवलकी पत्ती व नीमकी पतीका कल्क दूधमें माशेका चूर्ण मिला देना चाहिये । यह अम्लपित्त, अरुचि, अथवा ईखके रसमें मिला पीकर वमन करना चाहिये । इसी रक्तपित्त, क्षय, वमन, शूल, पृष्ठशूल तथा पित्तशूलको नष्ट | प्रकार शीतल जलादिमें बैठाना, नदीका तट, शुद्ध वायु तथा करता तथा रसायन है। (इसकी मात्रा ३ माशेसे १ तोले जलभरे कांस्यादि पात्र पेटपर फिराना, पित्तनाशक विरेचन, तक गुनगुने दूधके साथ देनी चाहिये । ) यह कुछ प्रतियों में खरगोश अथवा वटेरका मांसरस, खील व शहदका सन्तर्पण मिलता है, कुछमें नहीं। इसे योगरत्नाकरमें पाठभेदसे अम्लपि- अथवा शहदयुक्त शीतल पदार्थ सेवन करना हितकर है । पित्तताधिकारमें लिखा है । यह बहुत स्वादिष्ठ तथा गुणकारी है। जन्य छर्दि, ज्वर, शूल, दाह तथा तृष्णामें यवकी पेया ठण्डी इसका कितने ही बार अनुभव किया गया है।
कर शहद मिला पानसे शांति मिलती है। इसी प्रकार आंवलेका