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(१२२) चक्रदत्तः।
[ वातव्याध्य
-ree इक्षुरसाढको चैव छागमांसतुलात्रयम् ॥ २३५ ॥ ५ सेर, देवदारु २॥ सेर, सिरसाकी छाल २॥ सेर, लाख, १॥ जलपञ्चचत्वारिंशत्प्रस्थान्पक्के तु शेषयेत् । सेर, तथा लोध ११ सेर तथा जल ५२५ आढक अर्थात् ४२ सप्तदशरसप्रस्थान्मञ्जिष्ठाक्वाथ एव च ॥२३६॥ मन मिलाकर पकाना चाहिये, २ द्रोण अर्थात् २५ सेर ४८ कुडवोनाढकोन्मानो द्रवैरतस्तु साधयेत् ।। | तोला शेष रहनेपर उतारकर छान लेना चाहिये । फिर इसमें सुशुद्धतिलतैलस्य द्रोणं प्रस्थेन संयुतम् ॥ २३७॥ काजा २६ आढ़क अर्थात् १ मन ३ सेर १६ तोला छोड़ना काञ्जिकं मानतो द्रोणं शुक्तेनात्र विधीयते।।
चाहिये ( यद्यपि यहां काजी २६ आढक लिखी है, तथापि
आगे “काजिक मानतो द्रोणम्" इस श्लोकसें पूर्वका खण्डन आद्य एभिर्देवैः पाकः कल्को भल्लातकं कणा।।२३८,
कर १ द्रोण ही लिखा है ) अतःकाजी १ द्रोण (१२ सेर ६४ नागरं मरिचं चैव प्रत्यके षटपलोन्मितम् ।
| तोला), दूध ८ सेर, दही ८ सेर, दहीका तोड़ १ आढ़क भल्लातकासहत्वे तु रक्तचन्दनमुच्यते॥२३९ ॥ (३ सेर १६ तोला ), ईखका रस ६ सेर ३२ तोला, बकपथ्याक्षधात्री सरलं शताह्वा, कर्कटी वचा। |रेका मांस १५ सेर जल ३६ सेरमें पकाकर शेष १७ प्रस्थ चोरपुष्पी शटी मुस्तद्वयं पद्मं च सोत्पलम् ।।२४०॥ अर्थात् १३ सेर ४८ तोला छानकर सिद्ध किया रस, मजी. पीप्पलीमूलमञ्जिष्ठा साश्वगन्धा पुनर्नवा । | ठका काढ़ा ३ सेर तथा तिलतैल १३ सेर ४८ तोला तथा दशमूलं समुदितं चक्रमर्दो रसाञ्जनम् ॥ २४१॥ भिलावां छोटी पीपल, सौंठ, कालीमिर्च प्रत्येक २४ तोला, गन्धतृणं हरिद्रा च जीवनीयो गणस्तथा।
भल्लातक यदि बर्दाश्त न हो तो उसके स्थानमें लाल चन्दन एषां त्रिपालिकभागरायः पाको विधीयते ॥२४१।।
छोड़ना चाहिये । तथा हर्र, बहेड़ा, आंवला, सरल, सौंफ,
| काकड़ाशिंगी, वच, चोरपुष्पी (चोरहुली), कचूर, मोथा, देवपुष्पी बोलपत्रं शल्लकारसशैलजे।
नागरमोथा, कमल, नीलोफर, पिपरामूल, मजीठ, असगन्ध, प्रियङ्गशीरमधुरीमांसीदारुबलाचलम् ॥ २४३ ॥ पुनर्नवा मिलित दशमूल, चौड़ा, रसौत, रोहिषघास, हल्दी श्रीवासो नलिका खोटि:
| तथा जीवनीयगणकी औषधियां प्रत्येक १२ तोला छोड़कर नखीत्रयं च त्वक्पत्री पमरा पूतिचम्पकम ॥२४४॥ पकाना चाहिये । यह पहिला पाक हुआ। पाक तैयार होजाने
पर उतार छानकर फिर कड़ाहामें चढ़ाना चाहिये)। (२) फिर मदन रेणुका स्पृक्का मरुवं च पलत्रयम् ।
लवङ्ग, बोल, तेजपात, शालका रस, छारछीला, प्रियङ्गु, प्रत्येक गन्धतोयेन द्वितीयः पाक इप्यते ॥ २४५ ॥
खश, सौंफ, जटामांसी, देवदारु, खरेटी, सुनहली चम्पा, गन्धोदकं तु त्वक्पत्रीपत्रकोशीरमुस्तकम् ।
गंधाविरोजा, नाडीशाक, कुन्दरू खोटी, छोटी इलायची, मुरा, शान पञ्चावशातः ।। २४६ ।। तीन प्रकारका नख, काला जीरा, पमरा ( देवदारुभेद ) खटाशी, कुष्ठार्धभागोऽत्र जलप्रस्थास्तु पञ्चविंशतिः। चम्पा, मैनफल, सम्भालूके बीज, मालतीके फूल, मरुवा अर्घावशिष्टाः कर्त्तव्याः पाके गन्धाम्बुकर्माण।।२४७ | प्रत्येक १२ तोला तथा गंधोदक मिलाकर द्वितीय पाक करना गन्धाम्बुचन्दनाम्बुभ्यां तृतीयः पाक इप्यते । चाहिये । गन्धोदकविधिः-तेजपात, दालचीनी, खश, कल्कोऽत्र केशरं कुष्ठं त्वक्कालीयककुंकुमम ॥२४८ मोथा, खरेटीकी जड़ प्रत्यक १। सेर कूठ १० छ. भद्रश्रियं ग्रन्थिपर्ण लताकस्तूरिका तथा ।
जल २० सेर मिलाकर पकाना चाहिये, आधा रह लवङ्गागुरुकक्कोलजातीकोषफलानि च ॥३४९॥ जानेपर उतार छान लेना चाहिये । यही गंधोदक एला लवङ्गं छल्ली च प्रत्येकं त्रिपलोन्मितम् ।।
छोड़ना चाहिये । इस प्रकार द्वितीय पाक करना चाहिये ।
फिर (३) गंधोदक तथा चंदनका जल छोड़ तथा नागकेशर, कठ, कस्तूरी चट्पला चन्द्रात् पलं साधै च गृह्यते॥२५०/
दालचीनी, तगर, केशर, चंदन, भटेउर, लताकस्तूरी, लवंग, वेधार्थ च पुनश्चन्द्रमदो देयो तथोन्मितौ।
अगर, कंकोल, जावित्री, जायफल, इलायची, लवंग, छल्लीका महाप्रसारणी सेयं राजभोग्या प्रकीर्तिता ॥२५१॥ फूल लवंगके पेड़की छाल प्रत्येक १२ तोला, कस्तूरी २४ तो०, गुणान्प्रसारणीनां तु वहत्येषा बलोत्तमान् । कपूर ६ तोला छोड़कर तृतीय पाक करना चाहिये। इसमें चन्द.
नोदकका विशेष वर्णन नहीं है, अतः चंदनका क्वाथ ही तैलसे (१) गध्रप्रसारणीका पञ्चांग १५ सेर, पीले फूलका पियावांसा
समान भाग छोड़ना चाहिये। सिद्ध हो जानेपर उतार छानकर १० सेर, असगन्ध, एरण्ड़, खरेटी, शतावरी, रासन, पुनर्नवा,
विशेष सुगंधित बनानके लिये कस्तूरी तथा कपूर उतना ही फिर केबड़ा, दशमूलकी प्रत्येक औषधि, नीमकी, छाल, प्रत्येक द्रव्य
छोड़ना चाहिये। यह "महाराजप्रसारणी" तैल महाराजाओंके ही
लिये बनाया जा सकता है। यह पूर्वोक्त प्रसारणी तैलोंके समय लवजछल्लीति पाठान्तरम् ।
गुणोंको विशेषताके साथ करता है ।। २३१-२५१॥