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धिकारः]
भाषाटीकोपेतः।
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मद, मूर्छा, कास, कामला, तथा उन्मादरोग नष्ट होते | पित्तपानात्यये योज्यः सर्वतश्च क्रिया हिमाः ।
पानात्यये कफोद्भूते लंघनं च यथाबलम् ॥ ६॥ संन्यासचिकित्सा।
सर्वजे सर्वमेवेदं प्रयोक्तव्यं चिकित्सितम् ॥ ७ ॥ अजनान्यवपीडाश्च धूमः प्रधमनानि च ।
आभिः क्रियाभिर्मिश्राभिः शांतिं याति मदात्ययः। सूचीभिस्तोदनं शस्तं दाहः पीडा नखान्तरे ॥१०॥ वातजन्यमें मद्य कुछ जल तथा काला नमक व त्रिकटुलुञ्चनं केशरोम्णां च दन्तैर्दशनमेव च। चूर्ण मिलाकर पीना चाहिये । पित्तजन्य मदात्ययमें मूंगका आत्मगुप्तावघर्षश्च हितास्तस्यावबोधन ॥ ११॥ | यूष मिश्री मिलाकर अथवा मांसरस मीठा मिलाकर पीना तीक्ष्ण अजन, तीक्ष्ण द्रव तथा शुष्क नस्य, धूमपान, सुई।
चाहिये। तथा समस्त शीतल चिकित्सा करनी चाहिये । कोचना, जलाना, नाखूनोंके बीच में सुई आदि माना. कफात्मक मदात्ययमें बलानुसार लंघन तथा दीपनीय औषधि• बाल व रोमोंका उखाड़ना, दातोंसे काटना, काँचका घिसना
योसे युक्त मद्य पीना चाहिये । तथा सर्वजमें यह सभी 'बहाशाको दूर करता है॥१०॥११॥
चिकित्सा करनी चाहिये । इन क्रियाओंसे मदात्यय शान्त
हो जाता है ॥ ४-७॥ इति मूर्छाधिकारः समाप्तः।
दुग्धप्रयोगः। मदात्ययाधिकारः।
न चेन्मद्यक्रम मुक्त्वा क्षीरमस्य प्रयोजयेत् ॥८॥ लंघनाद्यैः कफे क्षीणे जातदौर्बल्यलाघवे ।
ओजस्तुल्यगुणं क्षीरं विपरीतं च मद्यतः॥९॥ खजूरादिमन्थः।
क्षीरप्रयोग मद्यं वा क्रमेणाल्पाल्पमाचरेत् । मम्थः खजूरमृद्वीकावृक्षाम्लाम्लीकदाडिमैः। ।
यदि पूर्वोक्त चिकित्सासे मदात्यय शान्त न हो, तो मद्यका परूषकैः सामलकैर्युक्तो मद्यविकारनुत् ।। १॥ कम छोड़कर दूधका प्रयोग करना चाहिये । लंघनादिसे कफके
छुहारा, मुनक्का, बिजौरा, नीम्बू या अम्लवेत या कोकम, क्षीण हो जानेपर तथा दुर्बलता व लघुता बढ़ जाने पर दूध इमली, अनार, फालसा व आंवला मिलाकर बनाया गया मन्थ-ही पीना चाहिये। दूध ओजके समान तथा मद्यसे विपरीत मद्यविकारको नष्ट करता है ॥१॥
है। अतः क्षीर या मद्यका प्रयोग क्रमशः थोड़ा थोड़ा 'मन्थविधिः।
करना चाहिये ॥८॥९॥ जले चतुष्पले शीते क्षुण्णद्रव्यपलं क्षिपेत् ।।
पुनर्नवाचं घृतम्। मृत्पात्रे मर्दयत्सम्यक्तस्माञ्च द्विपलं पिबेत् ॥२॥ १६ तोला ठण्ढे जलमें ४ तोला कुटी औषधि छोड़, मल, पयः पुननेवाकाथयष्टीकल्कप्रसाधितम् । छानकर ८ तोला पीना चाहिये ॥२॥
घृतं पुष्टिकरं पानान्मद्यपानहतौजसः ।। १०॥
पुनर्नवा क्वाथ, दूध, तथा मोरेठीके कल्कसे सिद्ध घृत तर्पणम् ।
पुष्टिकारक तथा मद्यपानसे क्षीण ओजवालेको हितकर है॥१०॥ सतीनमुद्रमिश्रान्वा दाडिमामलकान्वितान् ।
अष्टाङ्गलवणम् । द्राक्षामलकखजूरपरूषकरसेन वा ॥३॥ कल्पयेत्तर्पणान्यूषान् रसांश्च विविधात्मकान् ।।
सौवर्चलमजाज्यश्च वृक्षाम्लं साम्लवेतसम् । मटर, मूंग, आंवला, अनार मिलाकर मुनक्का, आंवला,।
त्वगेलामरिचार्धाशं शर्कराभागयोजितम् ॥ ११ ॥ छुहारा, फालसाके रससे तर्पण, यूष तथा अनेक प्रकारके मांस-1
हितं लवणमष्टाङ्गमनिसन्दीपनं परम् । रस बनाना चाहिये ॥ ३ ॥- .
मदात्यये कफप्राये दद्यात्स्रोतोविशोधनम् ॥ १२॥
काला नमक, () जीरा, (२) बिजौरा (३) निम्बू, सर्वमदात्ययचिकित्सा।
(४) अम्लवेत प्रत्येक एक भाग, (५) दालचीनी, मधं सौवर्चलव्योषयुक्तं किश्चिजलान्वितम् ॥४॥(६) इलायची, (७) काली मिर्च, प्रत्येक आधा भाग, जीर्णमद्याय दातव्यं वातपानात्ययापहम् ।
शक्कर १ भाग, मिलाकर बनाया गया चूर्ण कफज मदात्ययको मुद्यूषः सितायुक्तः स्वादुर्वा पैशितो रसः ॥ ५॥ नष्ट, अग्नि दीप्त तथा स्रोतोंको शुद्ध करता है ॥ १॥ १२ ॥