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________________ एक बार किसी ईर्ष्यालु ने सिद्धराज को कहा, 'जैन लोग सूर्य को नहीं मानते हैं ? सिद्धराज के पूछने पर आचार्य श्री ने कहा 'सूर्य को जितना जन लोग मानते हैं, उतना अन्य कोई नहीं मानते हैं । उसके अस्त होने पर (उसके विरह में) जन लोग आहार-पानी का भी त्याग कर देते हैं और उसके उदय पाने के बाद (सूर्योदय से ४८ मिनिट बाद) ही अपने मुंह में पानी डालते हैं।' आचार्य श्री के मुख से इस बात को सुनकर सिद्धराज अत्यन्त ही प्रभावित हो गया । सिद्धराज को कोई सन्तान नहीं थी...इसका उसे अत्यन्त ही दुःख था । पुत्र कामना से उसने सोमनाथ आदि तीर्थों की यात्रा करने का संकल्प किया और इस यात्रा के लिए उसने अपनी यौरियाँ आरम्भ कर दी । सिद्धराज ने श्रीमद् हेमचन्द्राचार्य जी को भी इस यात्रा में पधारने के लिए आमन्त्रण दिया दीर्घद्रष्टा हेमचन्द्राचार्य जी ने तत्काल उसके आमन्त्रण को स्वीकार कर लियो । शुभ मुहूर्त में यात्रा का मंगल प्रारम्भ हुआ । हेमचन्द्राचार्य जी ने बिहार (पद) यात्रा प्रारम्भ की । आचार्य श्री को पैदल चलते देखकर सिद्धराज ने ऊन्हे पालखी में बैठने के लिए आग्रह किया ! किन्तु करुणा के महासागर हेमचन्द्राचाय" जी ने पालखी में बैठने से इन्कार कर दिया । आचार्य जीने उसे समझाया 'जैन मुनि कभी भी वाहन में नहीं बैठते हैं क्योंकि उससे जीवों की विराधना होती है । जीव-रक्षा के पालन के लिए वे सदैव पैदल ही चलते हैं। ___बह बात सुनकर सिद्धराज को बड़ा आश्चर्य हुआ और दो-चार दिन बाद जब उसने पुनः आचार्य श्री को कांजी और निरस अन्न का भोजन करते हुए देखा...तो उसके आश्चर्य की सीमा न रही और वह आचार्य श्री के पवित्र सात्त्विक और त्यागमय जीवन से अत्यन्त ही प्रभावित हुआ। क्रमशः विहार करते हुए यह यात्रा संघ सिद्धगिरि की पावन धरती पर पहुंच गया । सिद्धराज ने आचार्य श्री के साथ शत्रुजय महातीर्थ की यात्रा की और परमात्मा आदिनाथ के दर्शन कर सभी भाव विभोर बन गए । सिद्धराजने उदारतापूर्वक इस पावन तीर्थ पर अपनी लक्ष्मी का सद्व्यय किया। ___ सिद्धगिरि की यात्रा पूर्ण कर यह यात्रा संघ गिरनार तीर्थ पर पहुचा और आचार्य श्री के साथ सिद्धराज ने नेमिनाथ प्रभु के भावार्वक दर्शन किये और वहाँ से प्रयाण कर सोमनाथ आए । कुछ इर्ष्यालु ब्राह्मणों के दिल में शंका थी कि हेमचन्द्राचार्य जी सोमनाथ की यात्रा नहीं करेंगे, परन्तु जब सिद्धराज के साथ हेमचन्द्राचार्य जी को शिवालय में जाते देखा तो उनके आश्चय का पार न रहा। वीतराग की स्तुति करते हुए श्रीमद् हेमचन्द्राचाय जी बोले - 'यत्र तत्र समये यथा तथा योऽसि सोऽस्यभिधया यया तया । वातदोषकलुषः स चेद् भवा नेक एष भगवन्नमोऽस्तु ते ॥
SR No.032128
Book TitleSiddha Hemchandra Shabdanushasan Bruhad Vrutti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVajrasenvijay
PublisherBherulal Kanaiyalal Religious Trust
Publication Year1986
Total Pages650
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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